यशवन्त सिंह को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित किए जाने पर पूर्वांचल की सियासत में भूचाल आ गया है। जिसे लेकर आज़मगढ़-मऊ सहित पूरे पूर्वाचल के यशवन्त सिंह समर्थक कार्यकर्ताओं में व्यापक रोष व्याप्त हो गया है।

आज़मगढ़-मऊ स्थानीय प्राधिकारी चुनाव में यशवन्त सिंह के पुत्र विक्रांत सिंह ‘रिशू’ द्वारा निर्दल पर्चा भर दिये जाने के कारण बीजेपी ने उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है। जिसे लेकर आज़मगढ़-मऊ सहित पूरे पूर्वाचल के यशवन्त सिंह समर्थक कार्यकर्ताओं में व्यापक रोष व्याप्त हो गया है। जिसे लेकर पार्टी के अन्दर और बाहर के बुद्धिजीवी पार्टी आलाकमान के इस निर्णय की आलोचना कर रहे हैं। बताते चलें कि बीजेपी में यशवन्त सिंह पूर्वांचल के एक मात्र कद्दावर नेता हैं। जिनका इस क्षेत्र की सियासत में व्यापक असर और बहुत गहरी व्यक्तिगत पकड़ है। अब देखना यह है कि पार्टी अपने इस अविवेकपूर्ण निर्णय पर कब पश्चाताप करती है? क्योंकि दो माह बाद लोकसभा का उप चुनाव और दो साल बाद लोकसभा का चुनाव होना है।

यह खबर लिखे जाने तक यशवन्त सिंह की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई थी। किन्तु उनके समर्थकों को पता है कि सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनको व्यक्तिगत रूप से बहुत चाहते हैं क्योंकि यशवंत सिंह ने वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री योगी के लिए अपनी विधानपरिषद की सदस्यता को त्याग कर सबको चौकाते हुए एक मिसाल कायम किया था। तब से अब तक वह पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता के रूप में पार्टी की सेवा करते आ रहे हैं।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व चाटुकारों से घिरा है या फिर भाँग खाये हुए है। विक्रांत सिंह रिशू जो अपने पिता के साथ पार्टी की सेवा कर रहे थे और आज़मगढ़-मऊ में विगत दो साल से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, उन्हें या फिर पार्टी के अन्य दूसरे कार्यकर्ता जैसे- सहजानन्द राय, दीपक राय, जयनाथ सिंह, राजेश सिंह महुवारी आदि को टिकट न देकर उसे टिकट दे दिया जिसने अपने बाप को जिताने के लिए चुनाव का रण ही छोड़ दिया।
आखिर पूर्वांचल की जनता यह जनाना चाहती है कि भाजपा कौन सी राजनीति कर रही है। क्या वह अपने इस अविवेकपूर्ण कदम के माध्यम से यशवन्त सिंह को यह संदेश/संकेत दे रही है कि वह जो अब तक अपने बेटे का खुलकर प्रचार नहीं कर रहे थे, अब आखिरकार खुलकर प्रचार करें और सपा के गढ़ आज़मगढ़-मऊ में किसी भी तरह से कमल खिला दें। यदि ऐसा नहीं है तो नैसर्गिक न्याय का तकाजा यही है कि सपा विधायक के पुत्र को प्रत्याशी बनाया न्यायोचित कदापि नहीं था। खैर, सियासत और जंग में सब कुछ जायज होता है। इसलिए आगे आगे-आगे देखिए होता है क्या?
-एम. सांकृत्यायन
