पूर्वांचल में अपने ढंग के अनोखे बुद्धिजीवी थे डाॅ. पी. एन. सिंह!

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प्रतिष्ठित लेखक और शिक्षक डाॅ पी एन सिंह नहीं रहे. आज शाम गाजीपुर के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया. वह 82 वर्ष के थे. पिछले काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे. सन् 1974-75 से लेकर हाल तक वह हमारे गाजीपुर जनपद और समूचे पूर्वांचल में वैचारिक और सांस्कृतिक स्तर के हर वाम-प्रगतिशील आंदोलन के महत्वपूर्ण चेहरा थे.
उनका पूरा नाम डाॅक्टर परमानन्द सिंह था. पर हर कोई उन्हें डाॅक्टर पी एन सिंह के रूप में ही जानता था. पूर्वांचल में अपने ढंग के अनोखे बुद्धिजीवी थे डाॅ पी एन सिंह! वह अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे. उनकी पीएच.डी. दुनिया के मशहूर मार्क्सवादी विचारक और आलोचक क्रिस्टोफर काॅडवेल पर थी. उनको देश भर के लेखक बुद्धिजीवी जानते और उनकी इज्जत करते थे. पर अपने दौर के कई प्रगतिशील बुद्धिजीवियों की तरह दिल्ली या मुंबई जाकर राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित होने के लोभ में उन्होने पूर्वांचल, खासकर गाजीपुर की अपनी वह जमीन नहीं छोड़ी, जहां के लोग उन्हें बेहद प्यार करते थे.


वह सिर्फ एक बड़े शिक्षण संस्थान के शिक्षक नहीं थे, समाज में भी उन्होंने शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पिछली शताब्दी के आठवें दशक से अंतिम समय वह इस मोर्चे पर लगातार सक्रिय रहे. अस्वस्थता के बावजूद वह लोगों से जुड़े रहे. अपने वैचारिक परिप्रेक्ष्य की रोशनी में लोगों को शिक्षित करते रहे, उनसे संवाद करते रहे. आठवें-नवें दशक में वह दिल्ली या लखनऊ जाकर कम्युनिस्ट पार्टी के वैचारिक शिक्षण-सत्रों में भी एक कम्युनिस्ट -शिक्षक के रूप में भाग लेते थे.


डाॅ सिंह का नाम तो बहुत पहले से सुन रखा था. तकरीबन चार दशक से. लेकिन उनसे मेरा परिचय बहुत बाद में हुआ. वर्ष 2016 में. पहल डाॅक्टर साहब की थी. एक दिन उन्होंने मुझे फोन किया और गाजीपुर में एक एकल व्याख्यान के लिए मुझे आमंत्रित किया. उन्होंने मेरा फोन नम्बर गाजीपुर के पूर्व भाकपा सांसद विश्वनाथ शास्त्री से लिया था. अस्वस्थता के बावजूद वह उस कार्यक्रम में लगातार मौजूद रहे.
उस कार्यक्रम के साथ हमारा-उनका जो रिश्ता बना, वह लगातार बना रहा. पिछले साल एक खास मुद्दे पर कुछ गलतफहमी भी बनी लेकिन इस साल अप्रैल में हुई हमारी मुलाकात में वह काफी कुछ दूर हो गयी.

उनका निधन हम सबके लिए बहुत बड़ी क्षति है. समूचे पूर्वांचल, खासकर गाजीपुर में वाम-प्रगतिशील सोच और मिज़ाज का एक बड़ा बौद्धिक स्तम्भ नहीं रहा! सलाम और श्रद्धांजलि डाॅक्टर साहब! परिवार, उनके मित्रो, सहकर्मियों और उनसे जुड़े तमाम युवाओं के प्रति हमारी शोक-संवेदना. (साभार)

                     -उर्मिलेश

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