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गजब के जनसेवक हैं…शाहआलम ‘गुड्डू जमाली’
मुबारकपुर के शानदार विधायक शाहआलम ‘गुड्डू जमाली’ ने लॉकडाउन-1 के दौरान जो भी राहत सामग्री गरीबों के घर पहुंचाई या बटवाई, उसका एक भी फोटो या समाचार सोशल मीडिया या मेनस्ट्रीम मीडिया में कभी नहीं आया। यदि वह चाहते तो प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया उनकी खबर भी प्रसारित करता। इसके बावजूद भी ऐसा न होना उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। इस प्रकार उनके सम्बन्ध में सिर्फ एक वाक्य में यह कहा जा सकता है कि जनाब शाह आलम ‘गुड्डू जमाली’ साहब गजब के जनसेवक हैं…
आज़मगढ़ के मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्र से लगातार दो बार विधायक रहे आलम उर्फ गुड्डू जमाली किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। पेशे से कारोबारी, स्वभाव से सौम्य व सहृदय होने के अलावा ऐसे समाजसेवी व राजनीतिक हैं, जो दिखावा से बहुत दूर रहते हैं। वह वर्ष 1993 में
दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया कालेज से बी.कॉम. और वर्ष 1995 में दिल्ली के मार्डन इन्स्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेन्ट से एम.बी.ए. की शिक्षा प्राप्त किये हैं। वह उत्तर प्रदेश के विधायकों में सबसे अलग किस्म के निराले विधायक थे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2012 में जब सूबे में सपा की लहर और 2017 में भाजपा की आँधी आई तब भी वह बसपा के टिकट से चुनाव जीते। इतना ही नहीं पूरा जिला जानता है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वह सपा के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को कड़ी टक्कर दिये थे। खैर! ‘बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ…’ के वर्तमान क्रम में वह पूर्वाचल के लब्ध- प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान शिब्ली नेशनल पीजी कालेज, आज़मगढ़ के प्रबन्धक भी रह चुके हैं।
कहते हैं कि धीरज, धर्म, मित्र व नारी के अलावा सच्चे जनप्रतिनिधि व लोकसेवक की पहचान भी आपातकाल में ही होती है। उस समय यह देखा जाता है कि वह जनता के दुःख में उसके साथ है या उससे दूर है। जिस समय पूरी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना (कोविड-19) से जूझ रही थी, और समूचे भारत में जब अचानक लॉकडाउन-1 लगाया गया था तब सरकार के पास कोई मुकम्मल तैयारी नहीं थी। इस समय गरीब जनता व मजदूर असहाय हो गये थे। जो जहाँ था, वहीं कैद हो गया था। अचानक सारी गतिविधियाँ ठप्प हो जाने के कारण दिहाड़ी मजदूर भूखमरी के कगार पर पहुँच गये थे और सरकारी बदइंतजामी के चलते प्रवासी श्रमिकों का लाँगमार्च (घर वापसी) शुरू हो गयी थी। जिसके चलते स्थिति बद से बदतर की ओर बढ़ने लगी थी। इस विषम परिस्थित व संकट की घड़ी में आज़मगढ़ की जनता ने अपने जनप्रतिनिधि से जो कुछ भी अपेक्षा किया था, तो उस पर उनका शानदार जनप्रतिनिधि शाहआलम ‘गुड्डू जमाली’ ही उनकी अपेक्षाओं एवं आकाक्षाओं पर खरे उतरे थे।
मुझे पूरी तरह से याद है कि लॉकडाउन-1 के दौरान मुबारकपुर के विधायक शाह आलम ‘गुड्डू जमाली’ अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ आज़मगढ़ के अपने निज-निवास पर डेरा डालकर बैठ गये और अपनी पूरी सामर्थ्य से मदद का पिटारा खोल दिया था और हर रोज उनकी गाड़ी दैनिक जीवन की उपयोगी खाद्य-सामग्रियों को लेकर मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्र में जाती और बेसहारों का सहारा बनकर उनकी सुधि लेती थी। इसके साथ ही विधायक जी यह भी सुनिश्चित करते कि कोई भी व्यक्ति भूखा सोने न पाये। जरूरतमंदों या कारकूनों के फोन आने पर तत्काल राहत सामग्रियों का पैकेट पहुंचा दिया जाता था। इस प्रकार उन्होंने बिना किसी भेद-भाव के यह नेक कार्य किया। जो पूरी तरह से मानवता की सेवा को समर्पित था। यह सिर्फ कहने के लिए है कि ‘एक हाथ से दान दो, तो दूसरे हाथ को पता न चले।’ जबकि जमीनी हकीकत यह थी कि लॉकडाउन-1 के दौरान तो ऐसा देखा गया कि किसी गरीब को कोई एक किलो आलू मदद में दे रहा है तो चार लोग उसके साथ आलू देते हुए फोटो खिंचवा रहे हैं। इसके बाद सोशल मीडिया पर शेयर करके स्वयं को धन्य महसूस कर रहे है। लेकिन उस समय इस बात का शत-प्रतिशत दावा किया जा सकता था कि बसपा विधायक शाह आलम ‘गुड्डू जमाली’ ने जो भी राहत सामग्री गरीबों के घर पहुंचाई या बटवाई, उसका एक भी फोटो या समाचार सोशल मीडिया या मेनस्ट्रीम मीडिया में नहीं आया। यदि वह चाहते तो प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया उनकी खबर भी प्रसारित करता।
इसके बावजूद भी ऐसा न होना उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता ही है। ‘नेकी कर दरियां में डाल’ के हिमायती शाह आलम ‘गुड्डू जमाली’ के द्वारा आज़मगढ़ में भी यह दरियादिली नहीं दिखाई गयी। बल्कि लॉकडाउन-1 के दौरान आज़मगढ़ और उसके आसपास तथा मुम्बई में फंसे कुछ लोगों ने जब उन्हें फोन करके उन्हें अपनी तकलीफों को बताया, तब गुड्डू भाई ने अपने लोगों के माध्यम से उन सभी जरूरतमंदों के यहाँ राहत पहुंचाने का भी कार्य किया था। यहाँ मैं इस बात को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि उनके द्वारा उस दौरान जो भी सेवा कार्य किया गया वह जाति, धर्म व मजहब से ऊपर उठकर था। उन्होंने बिना भेदभाव के सबके साथ, समान व्यवहार और यथासम्भव पूरी मदद किया था।
लॉकडाउन-1 के दौरान ही उनसे एक बार कुछ देर के लिए जब मेरी मुलाकात हुई थी, तब केवल समाज व देश की वर्तमान स्थित पर बात करते हुए उन्होंने काफी गम्भीर मुद्रा में कहा कि ‘इस समय कोरोना के चलते मुल्क के सामने कुआँ और पीछे खाई जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है। इसलिए सभी लोगों को सारे मत-भेद भुलाकर सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा। हम सभी को मिलकर सबसे पहले मुल्क को बचाना है।’ उसी समय मैंने गरीबों को राहत सामग्री के रूप में बटने वाले खाद्य-सामग्रियों का पैकेट उनके घर के बरामदे और कमरों में भरा हुआ देखा था और लगभग 50 हजार जरूरतमंद परिवारों तक राहत सामग्री पहुंचाई भी जा चुकी थी। बातचीत के दौरान उनका सांकेतिक आग्रह था कि मेरे कार्यो का समाचार प्रकाशित न किया जाय। जबकि सच्चाई यह है कि पत्रकारों को देखकर बहुत से नेताओं के मुँह से लार टपकने लगती है और छपास की भूख बढ़ जाती है। लेकिन गुड्डू जमाली भाई इसके बिल्कुल विपरित थे। इस प्रकार उनके सम्बन्ध में सिर्फ एक वाक्य में यह कहा जा सकता है कि जनाब शाह आलम ‘गुड्डू जमाली’ साहब गजब के जनसेवक हैं।
आज जब वह बसपा का दामन छोड़कर सपा सुप्रीमों के साथ आ गये हैं। वास्तव में आज़मगढ़ के मुबारकपुर क्षेत्र की जनता के हरदिल अजीज, गरीबों के रहनुमा और विगत दो बार से लगातार अपने विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले शाह आलम गुड्डू जमाली के समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी से मुलाकात के समाचार को लेकर सियासी गलियारे की तपिश कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो सपा सुप्रीमों ने भी उन्हें मुबारकपुर से चुनाव लड़ने को कहा है। ऐसे में यदि यह खबर मूर्त रूप लेती है तो सपा आज़मगढ़ की दसों सीटों पर जहाँ बहुत मजबूत हो जाएगी, वहीं आज़मगढ़ के आसपास के जनपदों की कई सीटों पर भी सपा को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अप्रत्याशित लाभ मिलेगा। जनाब शाह आलम गुड्डू जमाली साहब मुबारकपुर के गरीबों, असहायों, दलितों एवं अतिपिछड़ों के सर्वमान्य व लोकप्रिय नेता हैं।
बताते चलें कि बसपा से त्यागपत्र देने के बाद उनके चुनाव लड़ने को लेकर बने संशय से पूरा क्षेत्र असमंजस में था। सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव द्वारा उन्हें समाजवादी पार्टी में शामिल कर लिया गया है, केवल घोषणा की औपचारिकता ही बाकी है। अब जनता के अन्दर का संशय समाप्त हो गया है और समाजवादी पार्टी ने ऐसे लोकप्रिय जनप्रतिनिधि को मुबारकपुर की जनता का सेवक चुन लिया है तो निःसंदेह सपा को न एक शानदार जीत प्राप्त होगी बल्कि विगत पाँच सालों से लगातार जीत रही बसपा का तिलिस्म भी टूट जायेगा और सपा इस सीट को जीत कर इतिहास बनाएगी और उसकी इस जीत की गूँज दूर-दूर तक सुनाई देगी। ऐसे में सपा सुप्रीमों का दूरगामी निर्णय प्रसंशनीय प्रतीत होता है।
-एम. सांकृत्यायन
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