20,035 total views, 2 views today
इसे वक्त का खेल और बिडम्बना ही कहा जा सकता है! जिस व्यक्ति ने सार्वजनिक जीवन में अपने विरोधियों तक की मदद में नियम-कानून को आड़े नहीं आने दिया! उस व्यक्ति की प्रतिमा करीब दो साल से भी ज्यादा समय से अपने ऊपर पड़े आवरण के उतरने का इंतजार कर रही है। इस अवधि में प्रतिमा को एक जगह से हटाकर दूसरी जगह भी ले जाया गया। लेकिन उसका औपचारिक अनावरण नहीं हो पाया। आज भी यह प्रतिमा भोपाल के व्यापम चौराहे पर त्रिपाल से ढकी खड़ी है। किसी को भी यह नही मालूम है कि आखिर प्रतिमा का अनावरण क्यों नहीं हो पा रहा है?
आपके मन में स्वाभाविक रूप से यह सवाल आया होगा कि आखिर मैं किसकी प्रतिमा की बात कर रहा हूँ। वैसे भी भोपाल बुतों का शहर कहा जाता है। इस शहर के हर छोटे बड़े चौराहे पर प्रतिमाएं लगी हुई हैं। पिछले दो दशक में यह चलन तेजी से बढ़ा है। अभी भी प्रतिमाओं को लगाने का दौर चल रहा है।इमारतों का भी नामकरण किया जा रहा है। संस्थान भी लोगों को समर्पित किये गए हैं। लेकिन इसी शहर भोपाल में एक प्रतिमा दो साल से भी ज्यादा समय से अनावरण का इंतजार कर रही है। यह प्रतिमा है-पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की। प्रतिमा की जगह बदल गयी! राज्य की सरकार बदल गयी! लेकिन उसका अनावरण नही हो पाया।
अर्जुन सिंह पर बात करने से पहले उनकी प्रतिमा की बात करते हैं। 15 साल भाजपा की सरकार रहने के बाद 2018 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने। कमलनाथ सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री और अर्जुन सिंह के राजनीतिक शिष्य दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्द्धन सिंह स्थानीय शासन मंत्री बने।
उसी दौरान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कांग्रेस के दिग्गज नेता की प्रतिमा लगाने का निर्णय हुआ। न्यू मार्केट के पास नानके पेट्रोल पंप के सामने तिराहे पर अर्जुन सिंह जी की आदमकद प्रतिमा लगाई गई। प्रतिमा लगाने का काम जिस तीव्र गति से हुआ उस गति से उसका अनावरण नही हो पाया। बताया गया कि किसी कानूनी पेंच के चलते कांग्रेस सरकार अर्जुन सिंह की प्रतिमा का अनावरण नहीं कर पाई। महीनों तक प्रतिमा त्रिपाल के बोरे में दबी रही। कारण क्या था आजतक नही पता चल पाया है।
करीब दो साल पहले कांग्रेस के कुछ विधायकों ने कमलनाथ सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। कहा जाता है कि उन्हें इसके बदले उचित मूल्य मिला था। इस बजह से हुआ यह कि कमलनाथ अचानक वर्तमान से भूतपूर्व मुख्यमंत्री हो गए। वह यही नहीं समझ पाए कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो उनके अपने विधायक उनकी कुर्सी निकाल ले गए।
कमलनाथ गए और शिवराज गद्दीनशीन हुए। राज्य का पूरा निजाम बदल गया। अगर कुछ नहीं बदला था तो वह था अर्जुन सिंह की आदमकद प्रतिमा पर पड़ा त्रिपाल। धूप और बारिश में वह जर्जर तो हुआ लेकिन कोई उसे उतार नही पाया। या यूं कहें कि उतारा ही नहीं गया। फिर अचानक अक्टूबर 2021 में कुछ हलचल हुई। अर्जुन सिंह जी की प्रतिमा को रातोंरात नानके पेट्रोल पंप तिराहे से हटाकर, भर्ती घोटाले के लिए देश और दुनियां में चर्चित हुए व्यापम भवन के चौराहे पर स्थापित कर दिया गया।
बताते हैं कि नगर निगम भोपाल ने युध्द स्तर पर काम करके व्यापम चौराहे के एक कोने को सजाया संवारा! प्रतिमा के लिए शानदार पार्क बनाया। आसपास के इलाके को चमकाया!इस काम पर नगर निगम ने लाखों रुपये खर्च किये।
तब यह कहा गया कि 5 नवम्बर 2021 को , अर्जुन सिंह के जन्मदिन पर, प्रतिमा का अनावरण मध्यप्रदेश के रिकॉर्ड तोड़ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के हाथों होगा।
5 नवम्बर निकल गयी। उसे निकले तीन महीने होने को हैं। लेकिन अर्जुन सिंह जी की प्रतिमा को त्रिपाल से मुक्ति नही मिल पाई है।राज्य सरकार और नगर निगम भोपाल यह बताने की स्थिति में नही हैं कि आखिर अनावरण क्यों नही हो पा रहा है।
इस बारे में अर्जुन सिंह के पुत्र और प्रदेश के पूर्व मंत्री अजय सिंह के कार्यालय से संपर्क करने पर पता चला कि सरकार की ओर से अजय सिंह से यह लिखकर देने को कहा गया था कि प्रतिमा को दूसरी जगह लगाये जाने पर उन्हें कोई आपत्ति नही है। अजय सिंह ने अपनी ओर से अनापत्ति पत्र दे दिया था। उसके बाद व्यापम चौराहे पर अर्जुन सिंह की प्रतिमा को लगाया गया। अब अनावरण क्यों नही हो रहा ! यह बताने की स्थिति में कोई नही है।
इस बीच यह भी पता चला है कि प्रतिमा का अनावरण खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह करने वाले थे। उन्हें समय नही मिल पा रहा है। इसलिए अनावरण नही हो पा रहा है। प्रतिमा से अलग यदि अर्जुन सिंह की बात की जाए तो इसमें कोई संदेह नही है कि वे एक दिग्गज राजनेता थे। उन्होंने राजनीति में ऐसे नवाचार किये थे कि आज भी लोग उन्हें याद करते हैं। 5 नवम्बर 1930 को जन्में अर्जुन सिंह 1957 में पहली बार निर्दलीय विधायक के रूप में मध्यप्रदेश विधानसभा पहुंचे थे। बाद में उन्होंने मुख्यमंत्री, राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय किया। अर्जुन सिंह वेहद सौम्य व्यक्तित्व के मालिक थे। उन्होंने अपनी कार्यशैली की बजह से देश की राजनीति में अलग जगह बनाई थी।
वह पहली बार 9 जून 1980 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। दूसरी बार 11 मार्च 1985 को उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें एक दिन बाद ही पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य का राज्यपाल बनाकर नई जिम्मेदारी सौंप दी। 14 मार्च 1985 को अर्जुन सिंह ने पंजाब के राज्यपाल की कुर्सी सम्भाल ली। यह तो इतिहास में दर्ज है कि तब आतंकवाद की आग में जल रहे पंजाब को पटरी पर लाने में अर्जुन सिंह ने अहम भूमिका निभाई। करीब चार महीने में ही उन्होंने ऐतिहासिक लोंगोवाल-राजीव समझौता करा दिया। बाद में नवम्बर 1985 में राजीव गांधी ने उन्हें अपनी कैबिनेट में शामिल किया। दिसम्बर 1985 में वे दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए थे।
बाद में वे पी वी नरसिंहराव की कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्य रहे। अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद मतभेद के चलते उन्होंने राव मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया।कांग्रेस से भी बाहर निकले। वापस लौटकर फिर मनमोहन कैबिनेट के सदस्य बनें।
4 मार्च 2011 की सुबह इस दुनियां से रुखसत हुए अर्जुन सिंह ने विश्वासघात का बड़ा दौर भी देखा था। 1995 में जब वे राव कैबिनेट से अलग हुए थे तब उनके शिष्य दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। लेकिन दिग्विजय में अपने गुरु का साथ न देकर नरसिंहराव का साथ दिया था। इतिहास गवाह है कि 1996 (सतना) और 1998 (होशंगाबाद) का लोकसभा चुनाव विश्वासघात की बजह से ही अर्जुन सिंह हारे थे। उसके बाद उन्होंने कोई चुनाव ही नही लड़ा। मुख्यमंत्री और केंद्रीयमंत्री के तौर पर अपने फैसलों के लिये अर्जुन सिंह के उदाहरण आज भी दिए जाते हैं। नियमों को शिथिल करके लोगों की मदद करना उनकी कार्यशैली का सबसे महत्वपूर्ण अंग था।
अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल को नजदीक से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार विजय तिवारी कहते हैं-नेता बना जा सकता है! परंतु शासक की प्रतिभा जन्मजात होती है। अर्जुन सिंह उन बिरले नेताओ में थे जिनमें दोनों योग्यताएँ थीं। भारत में यह प्रतिभा पंडित नेहरू – इन्दिरा गांधी और नरसिंह राव में थी। अर्जुन सिंह का मानना था कि नियम जनता के लाभ के लिए होते हैं! यदि किसी मामले में उन्हें “””शिथिल”” करके जनता को लाभ दिया जा सकता है। तो ऐसा किया जाना चाहिए। परंतु उनके समकालीन नेता और बड़े बाबू {आईएएस} इसे गलत बताते थे। हालांकि उनमें से अधिकांश अब वर्तमान सरकार के हर फैसले पर ताली बजाते हैं।
ऐसे नेता की प्रतिमा नियमों के मकड़जाल में उलझ कर अनावरण का इंतजार कर है,यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
यह सच है कि उन्हीं अर्जुन सिंह की प्रतिमा उसी भोपाल में अनावरण का इंतजार कर रही है जहां के जर्रे जर्रे पर दशकों बाद भी उनकी छाप नजर आती है। देखना यह है कि अर्जुन सिंह कब त्रिपाल से मुक्ति पाते हैं?क्या प्रदेश के मुखिया इस बारे में कुछ सोचेंगे!
-अरुण दीक्षित (लेखक : वरिष्ठ पत्रकार हैं और भोपाल में रहते हैं।)