डायबिटीज – डॉ नवमीत

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डायबिटीज क्या है?

डायबिटीज मलाइटस “मेटाबोलिक डिसऑर्डर्स” यानि उपापचयी विकारों का एक समूह है जिसमें रोगी का ब्लड शुगर यानि रक्त में शर्करा की मात्रा लम्बे समय तक बढ़ी रहती है. यह शरीर में इन्सुलिन नामक एक हॉर्मोन की कमी से होता है. इन्सुलिन हमारे शरीर में मौजूद पैंक्रियास नामक एक ग्रंथि द्वारा पैदा किया जाता है. पैंक्रियास ग्रंथि हमारे पेट में आमाशय के ठीक नीचे मौजूद होती है और इसमें उपस्थित बीटा सेल्स के द्वारा इन्सुलिन का निर्माण किया जाता है.

इन्सुलिन का क्या कार्य होता है?

इन्सुलिन हमारे रक्त में ग्लूकोस यानि शर्करा की मात्रा को नियंत्रित रखता है. ग्लूकोस हमारे शरीर को उर्जा प्रदान करता है और यह हमें भोजन से प्राप्त होता है. खासतौर पर कार्बोहायड्रेट युक्त भोजन से. ग्लूकोस, फ्र्क्टोस, गलक्टोस आदि कार्बोहायड्रेट की सबसे छोटी इकाई होते हैं जिन्हें और अधिक छोटे रूपों में तोडा नहीं जा सकता. जब हम भोजन करते हैं तो हमारी पाचन क्रिया के दौरान बड़े कार्बोहायड्रेट जैसे स्टार्च टूट कर ग्लूकोस में बदल जाते हैं और यह ग्लूकोस हमारे पाचन तंत्र से रक्त में पहुँच जाता है. यही ग्लूकोस हमारे शरीर को उर्जा की आपूर्ति करता है. जब रक्त में ग्लूकोस की मात्रा बढ़ जाती है तो हमारी पैंक्रियास ग्रंथि सक्रिय हो जाती है और यह इन्सुलिन का निर्माण शुरू कर देती है. यह इन्सुलिन रक्त में ग्लूकोस की मात्रा को नियंत्रित करता है.

डायबिटीज कितने प्रकार की होती है?
डायबिटीज मलाइटस दो प्रकार की होती है:-
1. इन्सुलिन आधारित डायबिटीज
2. गैर इन्सुलिन आधारित डायबिटीज
इन्सुलिन आधारित डायबिटीज वह होती है जिसमें हमारे शरीर में इन्सुलिन का निर्माण बिलकुल ही नहीं होता. गैर इन्सुलिन आधारित डायबिटीज में इन्सुलिन का निर्माण तो होता है लेकिन यह या तो बहुत ही कम होता है या फिर यह रक्त शर्करा (ग्लूकोस) पर काम करना कम कर देता है. पहले प्रकार की डायबिटीज मुख्यतः बचपन या फिर किशोरावस्था में ही हो जाती है. इसमें रोगी को इन्सुलिन इंजेक्शन के साथ देना पड़ता है. दुसरे प्रकार की डायबिटीज अधिकतर अधेड़ आयु के लोगों में शुरू होती है. इसमें रोगी को रक्त शर्करा कम करने वाली दवाएं मुंह के द्वारा दी जाती हैं. अगर दवाओं से शर्करा नियंत्रित नहीं हो रही या फिर मरीज दवाओं को सहन नहीं कर पाता तो इन्सुलिन दिया जाता है.

डायबिटीज के लक्षण क्या हैं?

डायबिटीज के बहुत सारे लक्षण हो सकते हैं जो अलग अलग रोगियों में अलग अलग असर दिखाते हैं. बहुदा तो यह होता है कि डायबिटीज के शुरू होने के लम्बे समय के बाद लक्षणों का पता चलना शुरू होता है और तब तक बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है. फिर भी इसके कुछ मुख्य लक्षण हैं जिनपर ध्यान दिया जाये तो बीमारी को जल्द पकड़ा जा सकता है और रक्त परीक्षण द्वारा इसकी पुष्टि की जा सकती है. ये मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं :-

1. बार बार पेशाब आना
2. ज्यादा प्यास लगना
3. ज्यादा थकान होना
4. घावों के भरने में सामान्य से ज्यादा समय लगना
5. मुंह का बार बार सूखना
6. हाथ पैरों का सुन्न होना या चींटियाँ दौड़ना महसूस होना
7. धुंधला दिखाई देने लगना
8. पैरों पर अल्सर हो जाना
9. त्वचा खराब हो जाना
इनमें से एक या अधिक लक्षण किसी अन्य बीमारी की वजह से भी हो सकते हैं. इसलिए अगर ये लक्षण महसूस होते हैं तो आपको तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए ताकि जाँच की जा सके और डायबिटीज या कोई अन्य बीमारी अगर हो तो समय रहते उसका पता चल सके.
क्या डायबिटीज का कोई स्थाई इलाज है?
चिकित्सा विज्ञान में तमाम खोजों के बावजूद अभी तक डायबिटीज का कोई स्थाई इलाज ढूंढा नहीं जा सका है. हालाँकि जीवन शैली में सुधार जैसे सही खान पान, परहेज व् शारीरिक व्यायाम और सही व् समय पर दवा लेकर रोगी इस बीमारी को नियंत्रित कर सकता है और सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है.

डायबिटीज किस लिंग और आयु वर्ग के लोगों में होता है?

डायबिटीज होने की संभावना स्त्रियों, पुरुषों और ट्रांसजेंडर सबमें समान होती है। पहले तरह का डायबिटीज, जिसे टाइप 1 या इन्सुलिन आधारित डायबिटीज भी कहा जाता है, 10 साल तक के बच्चों में ज्यादा पाया जाता है। दूसरे तरह का डायबिटीज यानि टाइप 2 या गैर इन्सुलिन आधारित डायबिटीज किसी भी आयु में हो सकता है। लेकिन ज्यादातर यह 40 से 60 वर्ष आयु वर्ग के लोगों में शुरू होता है। लेकिन यह जिंदगी के बीसवें और तीसवें दशक में भी शुरू हो सकता है। बहुदा ऐसा होता है कि यह रोग शुरू होने के कई साल बाद पकड़ में आता है और तब तक शरीर का काफी नुकसान कर चुका होता है.

डायबिटीज का कारण क्या है?

डायबिटीज एक गैर संक्रामक रोग है और अधिकतर गैर संक्रामक रोगों की ही तरह इसका कोई एक कारण नहीं है बल्कि बहुत सारे कारक हैं जो इसके होने में भूमिका अदा करते हैं। जैसे

1. उम्र बढ़ने के साथ डायबिटीज होने की संभावना बढ़ने लगती है। खासतौर पर 40 साल के बाद।
2. मोटापा न केवल खुद में एक रोग है बल्कि यह डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हृदय रोग आदि अन्य गंभीर रोगों के होने का एक बहुत महत्वपूर्ण कारक भी है।
3. आराम परस्त जीवन शैली। अन्य गैर संक्रामक रोगों की तरह डायबिटीज भी जीवन शैली से जुड़ा हुआ रोग है। शारीरिक गतिविधि की कमी, आराम परस्ती और असंतुलित भोजन, जिसमें अधिक मीठा और जंक फूड शामिल है, डायबिटीज की संभावना को बढ़ा देते हैं।
4. हाइपरटेंशन से ग्रसित लोगों में भी डायबिटीज की संभावना अधिक होती है।
5. अगर रक्त सम्बन्धों में डायबिटीज है तो भी इसकी संभावना बढ़ जाती है।
6. गर्भावस्था में अगर डायबिटीज रहा हो तो ऐसी महिलाओं में बाद में डायबिटीज के स्थायी होने की संभावना बढ़ जाती है।
7. स्टेरॉइड्स का लंबे समय तक सेवन डायबिटीज की संभावना को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है।
8. कुछ वायरल इन्फेक्शन से भी डायबिटीज होने की संभावना होती है।
9. धूम्रपान और शराब के सेवन के साथ भी डायबिटीज का सम्बंध पाया गया है।
इसके अलावा बिना इन कारकों के भी किसी किसी को डायबिटीज हो सकता है। लेकिन एक अच्छी जीवन शैली, शारीरिक व्यायाम, संतुलित आहार, धूम्रपान व शराब का त्याग करके और नियमित चेकअप के साथ हम इस बीमारी को आने से न केवल रोक सकते हैं बल्कि बीमारी होने की स्थिति में इसपर नियंत्रण करना भी आसान हो जाता है।
पीसीओडी/पीसीओएस और डायबिटीज
सबसे पहले तो यह कि Polycystic ovary syndrome (PCOS)/ Polycystic ovary disease (PCOD) ये आखिर हैं क्या? पीसीओएस स्त्रियों में होने वाली एक हार्मोनल स्थिति है जिसमें उनके शरीर में पुरुषों वाले हॉर्मोन ज्यादा हो जाते हैं क्योंकि उनकी overies यानि अंडेदानियों में काफी सारे cysts बन जाते हैं जिसकी वजह से शरीर का हॉर्मोन संतुलन बिगड़ जाता है. इसके अलावा यह कंडीशन डायबिटीज जैसी अन्य स्थितियों को भी जन्म दे सकती हैं. 10 फीसदी महिलाऐं, जिनको पीसीओडी/पीसीओएस है, कभी न कभी डायबिटीज की चपेट में जरुर आ जाती हैं.
तो यह बीमारी डायबिटीज कैसे करती है?
यह तो हमें पता चल गया है कि इस बीमारी में रोगी के शरीर में पुरुषों के हॉर्मोन जैसे टेस्टोस्टेरोन ज्यादा हो जाते हैं. यह टेस्टोस्टेरोन इन्सुलिन के उत्पादन को उत्तेजित करता है जिसकी वजह से शरीर में इन्सुलिन बढ़ जाता है. जब यह इन्सुलिन लगातार बढ़ा रहता है तो शरीर में इन्सुलिन का असर कम होने लगता है और अंत में कुछ मरीज डायबिटीज का शिकार हो जाती हैं.

इसके अलावा बढ़ा हुआ इन्सुलिन overies पर और टेस्टोस्टेरोन पैदा करने के लिए दबाव डालता है और इसके फलस्वरूप बढ़ा हुआ टेस्टोस्टेरोन और अधिक इन्सुलिन पैदा करवाता है. इस तरह से यह एक कभी न खत्म होने वाला चक्र शुरू हो जाता है. इसके अलावा अन्य होर्मोन्स का असंतुलन भी बढ़ता जाता है और साथ में वजन भी बढना शुरू हो जाता है जो डायबिटीज को और अनियंत्रित कर देता है. इसके अलावा डायबिटीज व मोटापे की वजह से अन्य गैर संक्रामक रोगों जैसे हृदय रोग, हाइपरटेंशन आदि का खतरा भी बढ़ जाता है.

तो इससे बचाव लिए क्या किया जाए?

पीसीओडी/पीसीओएस को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता. लेकिन सही जीवन शैली व् दवाओं के साथ इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है और इसकी वजह से होने वाले डायबिटीज को रोका या नियंत्रित किया जा सकता है. समय पर संतुलित भोजन और शारीरिक व्यायाम के साथ समय पर निर्धारित मात्रा में दवाएं इसके लिए सबसे सही रणनीति है जिनकी मदद से रोगी अपने आपको स्वस्थ रख सकती है.

हाइपोग्लाइसीमिया या ब्लड शुगर का कम होना क्या है?

हाइपोग्लाइसीमिया डायबिटीज के रोगियों में होने वाली एक जटिलता है जिसमें रोगी के रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बहुत कम हो जाती है जिसका समय पर इलाज न होने पर बेहोशी और मृत्यु भी हो सकती है.

हाइपोग्लाइसीमिया होने के क्या-क्या कारण हैं?

1. रोगी इन्सुलिन/दवाओं का सेवन लगातार करता रहता है लेकिन भोजन बहुत कम कर रहा है या फिर बिलकुल ही नहीं कर रहा. नतीजन शरीर को भोजन से ग्लूकोज नहीं मिल पाता और दवाएं रक्त में पहले से मौजूद ग्लूकोज को कम करना शुरू कर देती हैं और यह खतरनाक स्तर तक कम हो जाता है.
2. रोगी दवाओं व् इन्सुलिन की ओवरडोज़ यानि जरूरत से अधिक मात्रा ग्रहण कर रहा है.
3. रोगी ज्यादा व्यायाम या शारीरिक श्रम कर रहा है लेकिन उस अनुपात में भोजन नहीं ग्रहण कर रहा.
4. शराब का सेवन भी डायबिटीज के रोगियों के रक्त में, जो दवाओं पर हैं, ग्लूकोज की मात्रा कम कर सकता है.
5. रोगी अगर अपने वजन के हिसाब से इन्सुलिन या दवाओं की ज्यादा डोज ले रहा है तो यह भी हाइपोग्लाइसीमिया का कारण बन सकता है.

ब्लड शुगर कम होने (हाइपोग्लाइसीमिया) के क्या-क्या लक्षण हैं?

1. चलते हुए लड़खड़ाहट महसूस होना और हाथ पैरों में कम्पन होना.
2. बहुत अधिक भूख लगना.
3. एकदम से अत्यधिक पसीना आना.
4. चक्कर आना
5. जी मितलाना या उलटी आना
6. सुस्ती आना, बहुत अधिक नींद आना
7. एकदम से सरदर्द होना
8. धुंधला दिखाई देना या एक वस्तु की दो आकृतियाँ दिखाई देना

हाइपोग्लाइसीमिया से कैसे बचा जा सकता है?

अगर आप डायबिटीज के रोगी हैं तो आपको इसके कारणों व लक्षणों के बारे में पता होना चाहिए. रोगी को चाहिए कि हर समय अपने साथ चीनी की गोलियाँ या गुड़ का टुकड़ा या टॉफी जैसी कोई मीठी चीज रखनी चाहिए. जैसे ही इस तरह के लक्षण महसूस हों, फ़ौरन इनमें से कोई चीज या चीनी, चॉकलेट आदि खा लेनी चाहिए. या फिर बेहतर होगा कि पानी में ग्लूकोज या चीनी घोल कर पी लिया जाये. अगर इससे भी फर्क न पड़े तो डॉक्टर के पास तुरंत जाएँ. हो सके तो अपने पास ग्लूकोमीटर यानि रक्त शर्करा जांचने की मशीन भी जरुर रखें ताकि लक्षण महसूस होने पर तुरंत जाँच की जा सके कि शर्करा कितनी कम हुई है. इसके अलावा अपने पास एक पर्चा जरुर रखें जिसपर आपका नाम, पता, आपके द्वारा सेवन की जाने वाली दवाओं के नाम व डोज, इन्सुलिन की डोज की जानकारी लिखी हों ताकि इमरजेंसी की स्थिति में किसी को आपकी मदद करने में आसानी हो सके और डॉक्टर को भी इलाज करने में आसानी रहे. अगर आपके घर में कोई डायबिटीज का रोगी है तो उसे इस बारे में जरुर बता दें व आपातकालीन स्थिति में इसका जरुर ध्यान रखें.

सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आप अपना भोजन पर्याप्त मात्रा में और समय पर करें. किसी भी समय का भोजन करना न भूलें.

– डॉ नवमीत
Shivam Rai

समकालीन मुद्दों पर लेखन। साहित्य व रंगकर्म से जुड़ाव।

https://www.facebook.com/shivam.rai.355/

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