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सैयद अख्तर हुसैन रिजवी ऊर्फ कैफी आजमी, शोषित, वंचित, बहिष्कृत और उत्पीडित समाज की आवाज़ को साहित्यिक अभिव्यक्ति प्रदान करने वाले महापंडित राहुल सांकृत्यायन, दर्जनों अमर जागरण गीतों के रचयिता अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध और साहित्य रत्न शिव प्रकाश गुप्त जैसी विभूतियों को अपने पालना में पालने -पोषने वाली आजमगढ़ की उर्वरा धरती के लोगों का राजनीतिक चरित्र बौद्धिक, समाजवादी,धर्मनिरपेक्ष और क्रांतिकारी रहा है। कुछ लोगों द्वारा आजमगढ़ के राजनीतिक मिजाज को जातिवादी और साम्प्रदायिक रंग में ढालने का प्रयास किया जा रहा हैं। इन संकीर्ण प्रयासो के बावजूद अंततः आजमगढ़ अपने मौलिक राजनीतिक चरित्र की तरफ अग्रसर होगा। साहित्य और अदब की इस जरखेज जमीन से न केवल शहीदो की शहादत की शानदार परम्परा में सबसे शानदार गीत लिखे गए बल्कि सहकार, समन्वय, साहचर्य, सहिष्णुता और सौहार्द की रंगो-रवायत रंगे कलमकारों की कलम से लिखे गीत इस देश की गुलाबी फिजाओ में तैर रहे हैं। न केवल इस माटी के लोगों ने प्यार मुहब्बत एकता अखंडता और शहादत के तराने लिखें बल्कि इस क्रांतिकारी जमीन के लोगों ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम से से लेकर 1947 तक चलने वाले स्वाधीनता के हर संघर्ष में बढ चढ कर हिस्सा लिया और अनगिनत कुर्बानियां दी। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बिहार के साथ-साथ पूरे पूर्वांचल में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व जगदीश पुर के राजा बाबू कुंवर सिंह की पलटन कर रही थी। बाबू कुंवर सिंह की पलटन में आजमगढ़ के रणबांकुरो ने बढ चढ कर हिस्सा लिया और इस पलटन ने अतरौलिया में बहादुरी से लडते हुए अंग्रेजों को बुरी तरह परास्त किया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों को भगाने के साथ-साथ स्वराज, स्वदेशी और अछूतोंद्धार का जो राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया उसकी प्रयोगशाला आजमगढ़ भी रहा। 1920 में असहयोग आन्दोलन का आह्वान जब महात्मा गाँधी ने किया तो आजमगढ़ के अनगिनत शिक्षकों वकीलों और विद्यार्थियों ने अंग्रेजों संस्थाओं का बहिष्कार कर दिया। गांधी के स्वदेशी और बहिष्कार के नारों पर झूमते और नाचते हुए अपने घरों से बाहर निकलने का साहसिक प्रयास आजमगढ़ के सत्याग्रहियो ने भी किया था। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आज़ाद , शहीद- ए- आजम भगत सिंह और उनके साथियों ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के नेतृत्व में इंकलाब ज़िन्दाबाद के नारों के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी संघर्ष आरम्भ किया तो इस संघर्ष की गूंज पूर्वांचल के जर्रे जर्रे तक पहुंच गई। इन्हीं इंकलाबी नारों से प्रभावित हो कर बाबू झारखंडेय राय ने अपनी जमींदारी को लात मार दिया और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के इस क्रांतिकारी संघर्ष में प्राण-पण से शामिल हो गये। 1930 मे जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने डांडी में समुद्र किनारे एक मुट्ठी नमक बनाकर सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरम्भ किया तो पंडित अलगू राय शास्त्री के नेतृत्व में हमारे पुरखों ने भी अपने तरीके से सत्याग्रह किया। 1931 मे कराची कांग्रेस अधिवेशन में जब रावी नदी के तट पर पंडित जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में पूर्ण स्वराज की उद्घोषणा की जा रही तब भी हमारे पुरखे सरयू और तमसा के घाट पर अंजुरी में जल लेकर नया स्वराज्य नया विहान लाने के लिए संकल्प ले रहे थे। आजाद हिन्द फौज के सेनापति की हैसियत से जब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने हिन्दुस्तानियों से “तुम मुझे खून दो, हम तुम्हें आजादी देंगे ” के नारे के साथ संघर्ष का बिगुल फूंका तो बंगाल और बिहार के बाद सबसे ज्यादा खून देने के लिए पूरे पूर्वांचल से लोग निकले थे। इसलिए आजमगढ़ के प्रायः हर दूसरे और तीसरे गाॅव में आजाद हिंद फौज के सेनानी मिल जायेंगे।
आजादी के बाद संविधान निर्माण के महायज्ञ में महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी और संविधानविद पंडित अलगू राय शास्त्री जैसे लोगों ने बढ चढ कर हिस्सा लिया। स्वाधीनता उपरांत भारत के पुनर्निर्माण और विकास यात्रा में आजमगढ़ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जब देश आजाद हुआ था तो गरीबी, भुखमरी, कुपोषण और अशिक्षा चहुँ ओर फैली हुई थी। शिक्षा को समस्त समस्याओं के समाधान का सबसे सशक्त औजार मानते हुए आजमगढ़ जनपद से पंडित मदनमोहन मालवीय और सर सैय्यद अहमद खां जैसे शिक्षा सूरमा और विद्या विशारद निकले। जिन्होंने आम जनमानस के सहयोग से अनगिनत शिक्षण संस्थानों को स्थापित करने का महान कार्य किया। जिसमें मौलाना शिबली नोमानी, बाबू इन्द्रासन सिंह, पंडित रामसुंदर पाण्डेय, बाबू रमाशंकर सिंह और पंडित श्याम सुन्दर मिश्र इत्यादि प्रमुख थे।
-मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।