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आगामी 28 अक्टूबर2021 को प्रदेश की राजधानी लखनऊ में उत्तरप्रदेश विश्वविद्यालय महाविद्यालय शिक्षक महासंघ के आवाहन पर अशासकीय महाविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकगण लम्बे समय से लंबित अपनी उचित मांगों को सरकार से मनवाने के लिए ईको गार्डन में एकत्रित होकर धरना देंगे तथा अपराह्न 2 बजे के बाद विधानसभा का घेराव करेंगे।
पुरानी पेंशन बहाली के लिए ‘दुखी मन शिक्षक’ सरकार से दो दो हाथ करने के लिए तैयार बैठे हैं।
देश के किसान भी लम्बे समय से आंदोलित हैं लेकिन उनकी समस्या को सुनकर समाधान निकालने की जगह सरकार मसखरी कर रही है। सरकार में बैठे जिम्मेदार लोगों से किसानों को राष्ट्रद्रोही, आन्दोलनजीवी जैसे तंज भी सुनने को मिल रहे हैं। आंदोलनरत कुछ किसानों ने तो अपनी जान भी गंवा दी। सरकार का या सरकार के मुखिया का विरोध करना तथा अपनी मांगों के समर्थन में लोकतांत्रिक तरीके अपनाकर बात रखना राष्ट्रविरोधी क्रियाकलाप की श्रेणी में नहीं आता है। विगत 5 अक्टूबर को भी प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों के मुख्यालय पर सफल प्रदर्शन हुए तथा भारी संख्या में एकत्रित शिक्षकों ने अपनी 24 सूत्रीय मांगों को ज्ञापन द्वारा सरकार के समक्ष रखा।
शिक्षकों की मांगें
वैसे तो शिक्षकों की कई मांगें हैं और सभी महत्वपूर्ण हैं लेकिन पेंशन की मांग सबसे गम्भीर और आवश्यक होने के कारण सर्वोच्च प्राथमिकता में है। यही कारण है कि वर्तमान में पेंशन प्रकरण सभी शिक्षकों, केंद्रीय और राज्यकर्मियों के लिए एक देशव्यापी प्रकरण के रूप राष्ट्रीय क्षितिज पर चर्चा के केंद्र में है। देर से ही सही किन्तु एक चेतना का संचार देश के सभी हिस्सों में कार्यरत कर्मचारियों में हुआ है। देश भर में पेंशन के मुद्दे पर विमर्श, धरना प्रदर्शन, आंदोलन का क्रम जारी है। सक्रियता का ही परिणाम है कि आज छोटे बड़े सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में पेंशन के मुद्दे को शामिल करने की बात कह रहे हैं। सरकार ने मंत्रियों, विधायकों और सांसदों के लिए तो पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू किया है परन्तु कर्मचारियों के लिए एनपीएस को थोप दिया है। पुरानी पेंशन व्यवस्था से आच्छादित कुछ माननीय तो एक साथ कई पेंशन प्राप्त कर रहे हैं यह कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है। वर्तमान सरकार का रवैया अत्यंत संवेदनहीन है। वह दम्भ से ग्रसित है और पेंशन जैसी उचित माँग की अनदेखी करते हुए कर्मचारियों के दमन के सहारे शासन करने की नीति को व्यवहार में ला रही है। यद्यपि लोकतंत्र के लिए संवाद बेहद महत्वपूर्ण है। कार्मिकों की समस्याओं को सुने बिना, उनके हितों की तिलांजलि देकर मनमाने निर्णय करना सरकार की सेहत के लिए हानिकारक हैं। सरकार का कामकाज सत्ताधारी दल से जुड़े कार्यकर्ताओं की बदौलत नहीं चलता है, कार्यकर्ताओं से पार्टी चलती है। जिनके कन्धों पर सरकार के परफार्मेंस का जिम्मा है अगर उनकी पीड़ा को सरकार महसूस नहीं करती है तो वह सरकार विफलता के रिकार्ड स्थापित करेगी।
एनपीएस को सरकार ने ऐच्छिक बताया परन्तु धीरे धीरे 2004 के बाद नियुक्त कार्मिकों पर इसे बलात लागू कर दिया है। कार्मिकों की गाढ़ी कमाई बाजार के हवाले है। कार्मिकों के मन में सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन को लेकर असुरक्षा का वातावरण निर्मित हो रहा है। जिन्हें देर से अर्थात एनपीएस क्रियान्वित होने के पश्चात नौकरी मिली अब वह पीढ़ी धीरे धीरे सेवानिवृत्ति की ओर है या सेवानिवृत्त हो रही है। सेवानिवृत्ति के पश्चात एनपीएस से आच्छादित कार्मिकों को जो पेंशन निर्धारित की जा रही है और प्राप्त हो रही है वह कहीं से भी उचित नहीं है। लेकिन उससे उपजने वाली समस्याओं को दूर करने की तरफ सरकार का ध्यान नहीं है।
नितिन गडकरी, संजीव बालियान, वीरेंद्र सिंह मस्त, कौशल किशोर, अजय मिश्र टेनी, योगी आदित्यनाथ जैसे सत्ताधारी दल के नेताओं ने पत्र लिखकर पुरानी पेंशन के क्रियान्वयन की अनुशंसा की है किंतु फिर भी सरकार का अड़ियल दृष्टिकोण समझ से परे है। शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन से एनपीएस के नाम पर प्रतिमाह कटौती तो कर ली जा रही है किंतु सरकार का अंशदान सम्मिलित कर सम्बन्धित कार्मिक के खाते में देर से और मनमाने तरीके से जमा किया जा रहा है।
किसी भी आंदोलित समूह से अहंकार का परित्याग कर बातचीत करने से बात बन सकती है और समाधान निकल सकता है लेकिन सरकार को अपनी हठधर्मिता छोड़ना पड़ेगा। सरकार में बैठे लोग जब सत्तारूढ़ नहीं होते हैं तो कुछ बातों या मुद्दों की पहल पैरवी पुरजोर ढंग से करते हैं परन्तु सत्ता प्राप्त करते ही वह मुद्दा उनकी सूची से बाहर हो जाता है। सरकार का दृष्टिकोण व्यवसायी न होकर लोककल्याणकारी होना चाहिए। अपने अधीन कार्मिकों की समस्याओं को अनसुना कर जैसे तैसे कार्यकाल तो पूरा किया जा सकता है लेकिन लोककल्याणकारी राज्य के उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती। यदि प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में उत्तरप्रदेश में ‘डबल इंजन की सरकार ‘वास्तव में है तो राज्य सरकार को चाहिए कि हठधर्मिता छोड़कर केंद्र सरकार के साथ समन्वय स्थापित करे तथा सकारात्मक तरीके से एनपीएस के निर्णय पर पुनर्विचार कर शिक्षकों कर्मचारियों के हित में पुरानी पेंशन व्यवस्था को पुनःलागू करे।
डॉ. सन्तोष कुमार मिश्र
असिस्टेंट प्रोफेसर अंग्रेजी
पी जी कालेज भुड़कुड़ा, गाजीपुर
(यह लेखक के निजी विचार है।)