जीवन के इस नव पड़ाव पर,
सत्य नए से पाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
भूल चुकीं हैं सासू मां भी,
विधि सारे पकवानों की।
सेवा मम्मी भी करती थीं,
जाने कितने मेहमानों की।।
कालचक्र का खेल निराला,
देख सहम सी जाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
क्या खाया था याद नहीं है,
चाबी सम्हली है तालों की।
बातें यादें बनकर रहतीं,
कुछ कुछ गुजरे सालों की।।
सेवा करके पुण्य कमाना,
खुद को भी समझाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
पहली ही तारीख याद है,
पेंशन लेने जाना है।
थोड़ा थोड़ा सबको देकर,
चैन भरे मुस्काना है।।
ममता नेहिल भाव समेटे,
बच्चों में छुप जाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
सारे जीवन की दूरी को,
जैसे पल में नापा हो।
गिनती अक्षर कितनी बातें ,
याद नहीं अब पापा को।।
बहुत विषमता का जीवन यह,
हृदय भाव बतलाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
बच्चे खुश तो खुश हो जाते,
कभी सिर्फ मुस्काते हैं।
देख उदासी नैनों की भी,
आंसू खूब बहाते हैं।।
कितनी अद्भुत सी लीलाएं,
मात-पिता गुण गाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
मात-पिता अरु सास ससुर जी,
की गिनती है नाथों में।
यश कीर्ति सम्मान चले हैं,
लिए सफलता हाथों में,
सुहासिनी का शीश झुका है,
आशीषों को पाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
स्वस्थ सदा उन्मुक्त रहें,
उपयुक्त काल गति फेरा हो।
प्रेम धर्म विश्वास सम्हाले,
सत्य विभा का डेरा हो।।
मातु जन्मदिन के अवसर पर,
प्रभु को शीश झुकाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
अवनत होते शीश हमारे,
शीश आपका हाथ रहे।
मम्मी का आशीष सदा ही,
हम बच्चों के साथ रहे।।
नाती पोतों की मुस्कानों,
में चारों को पाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
जीवन के इस नव पड़ाव पर,
सत्य नए से पाती हूं।
वृद्धावस्था बाल पने में,
देख-देख हर्षाती हूं।।
-सपना एस दत्ता ‘सुहासिनी’
