आशा पारेख को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार मिलना गर्व की बात-प्रोफेसर अखिलेश चन्द्र

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भारतीय फिल्म उद्योग में एक नायिका आशा पारेख (79)को फ़िल्म उद्योग का सबसे बड़ा पुरस्कार “दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 2022″मिलना बड़े गर्व की बात है।दादा साहब फाल्के पुरस्कार भारतीय फिल्मों के जनक दादा साहेब फाल्के के नाम से भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है, जो किसी व्यक्ति विशेष को भारतीय सिनेमा में उसके आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार का प्रारम्भ दादा साहब फाल्के के जन्म शताब्दि-वर्ष 1969 से हुआ। उस वर्ष राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार के लिए आयोजित 17वें समारोह में पहली बार यह सम्मान अभिनेत्री देविका रानी को प्रदान किया गया।दादा साहेब फाल्के को फ़िल्म उद्योग का जनक भी कहा जाता है।तब से अब तक यह पुरस्कार लक्षित वर्ष के अंत में अथवा अगले वर्ष के आरम्भ में ‘राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार’ के लिए आयोजित समारोह में प्रदान किया जाता है। वर्तमान में इस पुरस्कार में 10 लाख रुपये और स्वर्ण कमल के साथ अंगवस्त्रम दिया जाता हैं।

आगामी 30 सितम्बर 2022 को यह पुरस्कार भारत की प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के हांथों से आशा पारेख जी को दिया जाएगा।आशा पारेख का फ़िल्मी जीवन जितना चमकता हुआ दिखाई देता है दरअसल उसमें जो चमक है वह इनके अथक परिश्रम का फल है।आशा पारेख जी का जन्म 02 अक्टूबर 1942 को गुजरात में हुआ।

आशा पारेख ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में बेबी आशा पारेख नाम से की थी। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक बिमल रॉय ने उन्हें स्टेज समारोह में नृत्य करते देखा और उन्हें दस साल की उम्र में फ़िल्म माँ (1952) में लिया और फिर उन्हें बाप बेटी (1954) में दोहराया। इस फिल्म की विफलता ने उन्हें निराश किया और भले ही उन्होंने कुछ और बाल भूमिकाएं कीं, फिर भी उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा को फिर से जारी किया। सोलह साल की उम्र में उन्होंने फिर से अभिनय करने की कोशिश की और एक नायिका के रूप में अपनी शुरुआत की। लेकिन उन्हें अभिनेत्री अमीता के लिये विजय भट्ट की फिल्म गूँज उठी शहनाई (1959) से खारिज कर दिया गया, क्योंकि फिल्म निर्माता ने दावा किया था कि वह प्रसिद्ध अभिनेत्री बनने के काबिल नहीं थी।इस बात को आशा पारेख जी ने टी वी शो इंडियन आइडल के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में अभिव्यक्त किया।खारिज होने के ठीक आठ दिन बाद, फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने उन्हें शम्मी कपूर के विपरीत फ़िल्म दिल देके देखो (1959) में नायिका के रूप में लिया। इस फ़िल्म ने उन्हें एक बड़ा सितारा बना दिया।

इस फिल्म से नासिर हुसैन के साथ उनका लंबा और फलदायी जुड़ाव रहा। उन्होंने अपनी छः: और फिल्मों में आशा को नायिका के रूप में लिया फ़िल्म जब प्यार किसी से होता है (1961) फ़िल्म फिर वही दिल लाया हूँ (1963) फ़िल्म तीसरी मंज़िल (1966)फ़िल्म बहारों के सपने (1967)फ़िल्म प्यार का मौसम (1969) और फ़िल्म कारवाँ (1971)। आशा पारेख को मुख्य रूप से उनकी अधिकांश फिल्मों में ग्लैमर गर्ल / उत्कृष्ट नर्तकी के रूप में जाना जाता था। जब तक कि निर्देशक राज खोसला ने उन्हें अपनी तीन फिल्मों में अलग तरह की भूमिकाएँ नहीं दी फ़िल्म दो बदन (1966) फ़िल्म चिराग (1969) और फ़िल्म मैं तुलसी तेरे आँगन की (1978)। निर्देशक शक्ति सामंत ने उन्हें अपनी अन्य फिल्मों-पगला कहीं का (1970) और फ़िल्म कटी पतंग (1970) में अधिक नाटकीय भूमिकाएँ दीं। बाद वाली के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। उनकी अन्य फिल्मों में भरोसा, आन मिलो सजना,आये दिन बहार के,जब प्यार किसी से होता है,उपकार,लव इन टोकियो,हम हिंदुस्तानी, घराना,बाप बेटी,अपना बना के देखो,आशा प्रमुख हैं।

आशा पारेख की फिल्मों में तीसरी मंजिल (राजकपूर) कारवां (जितेन्द्र) मैं तुलसी तेरे आंगन की (विजय आनन्द) कटी पतंग(राजेश खन्ना)और आया सावन झुमके (धर्मेंद्र)समाधि (धर्मेंद्र)के साथ जब भी पर्दे पर चलती थी तो लोग पर्दे पर सिक्के उछालते थे और तो और जब नायिका पर्दे पर रोती थी तो लोग रोने लगते थे।आशा पारेख जी का डांस पूरी फ़िल्म इंडस्ट्रीज का सिग्नेचर डांस था।मैं तुलसी तेरे आंगन की का शीर्षक गाना जो आशा जी नूतन और विजय आनन्द पर फिल्माया गया था उसे देखकर लोग झार-झार रोया करते थे।आया सावन झुमके का गाना-आया सावन झुमके का नृत्य जो धर्मेंद्र और आशा जी पर फिल्माया गया है वो आज भी तारो ताजा लगता है।फ़िल्म कटी पतंग का शीर्षक गाना-ना कोई उमंग है ना कोई तरंग है मेरी जिंदगी है क्या एक कटी पतंग है जब पर्दे पर चलती है तो लोग रोने लगते थे।क्या गजब का अभिनय पर्दे पर करती रहीं हैं ।

आशा पारेख ही फिल्मी दुनियां की एक मात्र अभिनेत्री हैं जिन्हें जुबली अभिनेत्री का भी खिताब मिला था।60 के दशक में आशा जी एक अभिनेता से भी बड़ी फीस अपने पारिश्रमिक के रूप में लेती थी।उस समय जुबली कुमार के नाम आए राजेन्द्र कुमार का नाम नायकों में शुमार था।जुबली का मतलब उस स्टार से लिया जाता था जिसकी फिल्में 25 हफ़्ते से कम सिल्वर स्क्रीन पर न चले।उस समीकरण में एक नायिका के रूप में यह खिताब सिर्फ एक अभिनेत्री को मिला और वो थीं आशा पारेख जी।मैं आशा पारेख जी को और उनके काम को हृदय से प्रणाम करता हूँ।

भारतीय फिल्मों को ही अपना जीवन मानने वाली आशा पारेख ने कला को ही अपना जीवन मान लिया और इस जीवन को कला को ही समर्पित भी कर दिया।आशा पारेख जी ने आजीवन अविवाहित होने का व्रत भी ले लिया और इसे अभी भी वह निभा रहीं हैं।आपको भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से पहले ही पुरस्कृत कर रखा है।इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली वह एक ऐसी अदाकारा है जिस पर पूरी इंडस्ट्रीज ही नहीं पूरा भारत गर्व करेगा।मैं भारत सरकार का व्यतिगत आभार व्यक्त करता हूँ और आशा पारेख जी को बहुत बहुत बधाई प्रेषित करते हुए ईश्वर से उन्हें दीर्घायु,स्वस्थ रखने की प्रार्थना भी करता हूँ। (लेखक:श्री गाँधी पी जी कॉलेज, मालटारी,आजमगढ़ के शिक्षा संकाय में प्रोफेसर हैं।9415082614)

अखिलेश चन्द्र

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