हट जाओ अब हठ न करो! – शंभूनाथ शुक्ल

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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को अपनी-अपनी सीटों से स्वतः त्याग पत्र दे देना चाहिए। अब दोनों लोगों के बूते का नहीं है इस देश की समरसता, वैविध्य और समृद्धि तथा हिंदू धर्म की उदार व समदर्शी परंपरा को बनाये रखना। यहाँ हिंदू इसलिए लिखा, क्योंकि ये हिंदू परंपरा को बचाए रखने का दावा कर रहे हैं। राम मंदिर बन जाने से कोई भी हिंदू परंपरा समृद्ध नहीं होती न काशी कॉरीडोर बनाने से। हिंदू परंपरा समृद्ध होती है “जियो और जीने दो” से। पिछले दिनों की अपनी जगन्नाथ पुरी यात्रा से मुझे अहसास हुआ कि बीजद जैसे दल भी भाजपा की तुलना में इस परंपरा को अधिक पुख़्ता तरीक़े से बढ़ा रहे हैं। ओड़िशा में पीने के पानी के लिए आपको बोतलों का सहारा नहीं लेना पड़ता। वहाँ ग़रीबी, बेरोजगारी है लेकिन हिंदी पट्टी जैसा दारिद्र्य नहीं। हिंदी पट्टी में महँगी गाड़ियों में चलने वाला व्यक्ति भी अपनी संकीर्ण, ओछी और दरिद्र मानसिकता का परिचय दे देता है।

 


श्री जगन्नाथ मंदिर में आने वाले भक्त गरीब हैं किंतु उनकी आस्तिकता कोई दिखावा नहीं है। आठ जनवरी को एक लाख से ऊपर लोगों ने दर्शन किये। प्रसाद पाया। आस्था का ऐसा ज्वार मैंने सिर्फ़ पुरी और तिरुपति में ही देखा है। लेकिन पुरी के मंदिर में आस्था के साथ-साथ शास्त्रीयता भी है। वहाँ आए भक्तों में कोई भी किसी व्यक्ति या राजनेता का भक्त नहीं था और योगी को तो वे लोग जानते भी नहीं। मोदी जी के बारे में एक ने कहा, कि प्रधानमंत्री जब इतना डरते हैं तो वे भला देश को क्या बचाएँगे। एक इंदिरा गांधी थीं, जिनको किसी बदमाश ने हिट कर नाक पर पत्थर मारा लेकिन वे वार झेल ले गईं और कहा, मर कर भी देश की सेवा करूँगी। यह होती है बहादुरी। हालाँकि यहाँ के लोग इंदिरा गांधी के पोता-पोती को इस लायक़ नहीं समझते कि वे देश चला सकेंगे। एक ने कहा कि वे दोनों अब्सेंट माइंड रहते हैं। बहना कम और भाई ज़्यादा। एक पंडा ने कहा, मोदी ने हिंदू धर्म का नाश अधिक किया है।

एक बात और महत्त्वपूर्ण और वह यह कि मैंने कई बार पुरी जा कर वैष्णव हिंदुओं के इस धाम में विग्रह के दर्शन किए हैं, लेकिन पहली बार मुझे कोई सिख नहीं दिखा। जबकि गुरु नानक को पुरी बहुत पसंद आया था और गोवर्धन पीठ के साथ-साथ यहाँ एक विशाल गुरुद्वारा भी है। निम्बार्काचार्य का मठ भी। बाक़ी गौड़ीय मठ का तो प्रमुख आस्था केंद्र है। इसीलिए यहाँ बंगाली भक्त अधिक आते हैं। सिख भी पहले यहाँ बहुत आते थे, जो इस बार नहीं मिले। गुरुद्वारा भव्य है लेकिन ख़ाली पड़ा था। गुरु नानक ने अपनी पूरब यात्रा की उदासी का केंद्र पुरी को रखा था। “गगन में थाल” गुरु नानक ने पहले यहीं गया था।

– शंभूनाथ शुक्ल 
(लेखक : हिन्दी दैनिक हिन्ट व निवाण टाइम्स के प्रधान सम्पादक हैं।)

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