‘संघर्ष समाधान: आरएसएस का रास्ता ‘ पुस्तक स्वयंसेवकों के कटु अनुभवों एवं संघर्षों पर आधारित है। आरएसएस को सम्पूर्ण विश्व में एक सांस्कृतिक संगठन के रूप में देखा जाता है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2025 में अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाएगा। आज आरएसएस के स्वयंसेवक साहित्य निर्माण और प्रसार पर काम कर रहे हैं। डॉ. रतन शारदा कई वर्षों से इसी तरह के विचार का अनुसरण कर रहे हैं। रतन शारदा की कई पुस्तकें हैं जो लोगों को जागरूक करती हैं। डॉ रतन शारदा और डॉ यशवंत पाठक ने इस श्रृंखला में एक पुस्तक, कॉन्फ्लिक्ट रिजॉल्यूशन: द आरएसएस वे (गरुड़ प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड) लिखी है जिसका विमोचन गत 25मार्च2022को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री अरुण कुमार के करकमलों द्वारा कांस्टीच्युशन क्लब नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ।पुस्तक विमोचन के उपरांत अपने उदबोधन में श्री अरुण कुमार ने कहा कि ‘हमारा कोई विरोध कर सकता है लेकिन हमारा कोई विरोधी नहीं है।हमने समाज में दो ही तरह के लोगों को माना है एक वे जो संघ में आ गए एक वे जो संघ में आना बाकी हैं,इसके अलावा कोई नहीं है।ये हमारा कन्विक्शन है और हम इसी कन्विक्शन के आधार पर काम कर रहे हैं।’
डॉ. रतन शारदा और डॉ. यशवंत पाठक की पुस्तक ‘कॉन्फ्लिक्ट रिजॉल्यूशन: द आरएसएस वे’ उन संघर्षों पर विशिष्ट अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, जिन्होंने भारत को पीड़ित किया है, जिसमें तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है जिन्होंने दशकों से भारत को लहूलुहान किया है: जम्मू और कश्मीर, पंजाब और उत्तर पूर्व क्षेत्र। इसके अलावा, यह पुस्तक इस बात पर ध्यान केंद्रित करती है कि कैसे आरएसएस ने कश्मीर, पंजाब और उत्तर पूर्व में कार्य किया, सोचा,और अपने आप को बनाए रखा।
सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक मुद्दों सहित देश में कई चिंताओं के संबंध में, आरएसएस की आधिकारिक राय क्या थी और आरएसएस ने इन क्षेत्रों में अब तक क्या किया, इस पर व्यापक अध्ययन कम ही किया गया था। रतन शारदा और यशवंत पाठक का ‘कांफ्लिक्ट रिजॉल्यूशन: द आरएसएस वे’ इसी दृष्टिकोण का एक प्रयास प्रतीत होता है।
यह पुस्तक तीन खंडों में विभाजित है। पहले खंड में जम्मू और कश्मीर का विस्तृत विवरण है। जम्मू और कश्मीर में आरएसएस की भूमिका को कई विशिष्ट संदर्भों के साथ उजागर किया गया है। इस खंड में, पाठक कश्मीर के कट्टरपंथीकरण और हिंदू पलायन के बारे में विस्तार से जानेंगे। इस पुस्तक में खालिस्तानियों और कश्मीरी अलगाववादियों के बीच गठजोड़ के रहस्योदघाटन से पाठक अचंभित रह जाएंगे. कश्मीर में वहाबीकरण की भूमिका से पाठक स्तब्ध रह जाएंगे और 1986 से 1992 तक हिंदुओं पर हुए सभी मुस्लिम हमलों का विस्तृत विवरण भी पुस्तक में दिया गया है। इस विस्तृत विवरण को पढ़ने के बाद, पाठकों को एहसास होगा कि इंसानियत, जम्हूरियत, कश्मीरियत और गंगा जमुनी तहज़ीब जैसे नारे एक षणयंत्र या छलावा से ज्यादा कुछ नहीं हैं। इस पुस्तक के लेखकों के अनुसार, आरएसएस ने पाकिस्तान के साथ बातचीत के खिलाफ आक्रामक रवैया बनाए रखा है, यह दावा करते हुए कि कोई भी वार्ता तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक कि पाकिस्तान भारत पर हमला करना बंद नहीं कर देता और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से पीछे नहीं हट जाता।
पुस्तक के दूसरे भाग में पंजाब में आरएसएस की भूमिका का विश्लेषण किया गया है। भारत के विभाजन के दौरान पंजाब में हुए नरसंहार का दस्तावेजीकरण किया गया है, साथ ही यह भी बताया गया है कि कैसे आरएसएस और अकाली दल के कार्यकर्ताओं ने अपने प्राणों की परवाह किये बिना लाखों लोगों को बचाया। उस समय के आरएसएस के प्रस्तावों के विस्तृत विवरण के अलावा, मुख्यधारा के मीडिया, नेताओं और राजनीतिक दलों ने उस समय क्या कहा, इसका भी पूरा विवरण है। किताब के एक हिस्से में उस समस्या का भी विवरण दिया गया है जो खालिस्तानियों को आरएसएस के साथ है।
पुस्तक के तीसरे खंड में पूर्वोत्तर क्षेत्र में उग्रवाद को शामिल किया गया है। पाठक इस खंड में इन विद्रोहों में चर्च की भागीदारी के बारे में जानेंगे। उत्तर पूर्व में चर्च की प्रबल पहुंच और अधिकार में विदेशी धन की भूमिका का विस्तृत विश्लेषण भी पाठक को चकित कर देगा। पूर्वोत्तर से संबंधित प्रत्येक प्रश्न और उसे हल करने में आरएसएस की भूमिका पर इस खंड में विस्तार से चर्चा की गई है। पाठक अवैध अप्रवासियों और उत्पीड़ित शरणार्थियों के बीच अंतर करने के आरएसएस के प्रयासों के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।
संक्षेप में, डॉ रतन शारदा और डॉ यशवंत पाठक की ‘संघर्ष समाधान: आरएसएस का रास्ता’कश्मीर के संदर्भ में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सत्य को उजागर करने का एक साहसी और व्यापक प्रयास है। आरएसएस के बारे में जिज्ञासु समीक्षक इस पुस्तक में अपने प्रश्नों के उत्तर पाएंगे एवं आरएसएस के स्वयंसेवक अपने स्वयं के संगठन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी अर्जित करेंगे जो व्यापक रूप से प्रचारित नहीं है। ऐसी साहित्यिक कृति देखकर प्रेरणा मिलती है।

-डॉ. सन्तोष कुमार मिश्र
असिस्टेंट प्रोफेसर,अंग्रेजी
पी जी कॉलेज, भुड़कुड़ा,गाजीपुर
