महारानी 2 : सफलता के आसन पर विराजमान

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Maharani Season 2 Review: ओटीटी प्लेटफार्म सोनी लिव पर आई महारानी 2 के सफलता के तत्वों पर बात

पहले सीजन में भ्रष्टाचार वाली राजनीति दिखाने वाली ‘महारानी’ दूसरे सीजन में जंगलराज, मंडल-कमंडल की राजनीति से परिचय करवाती है। बदलते भारत की तस्वीर सामने रखती है। हकीकत को उजागर करती है। साथ ही मर्दवाद की गंध से रुबरू करवाती है।

यह जॉली एलएलबी और जॉली एलएलबी 2 फेम सुभाष कपूर द्वारा बनाई गई है, जबकि रवीन्द्र गौतम ने निर्देशन किया है। जिसमें हुमा कुरैशी और सोहम शाह के अलावा, अमित सियाल, विनीत कुमार, मोहम्मद आशिक हुसैन, कनी कुसरुति और तनु विद्यार्थी हैं। मैं उनमें से कुछेक कलाकारों के काम पर टिप्पणी कर रहा हूं जो दर्शकों को खासा पसंद आ रहे हैं।

मैं आपको चेता देता हूं कि यहां पर मुख्य किरदार और स्टार कास्ट की बात नहीं हो रही है और ना ही समाज में व्याप्त बुराइयों, छल-कपट की।

इस दूसरे सीजन में सुभाष कपूर ने नए किरदारों का परिचय कराया है। इन अभिनेताओं की कास्टिंग एकदम सटीक है। कहीं कोई किरदार कमजोर नहीं प्रतीत हो रहा है। सभी एक दूसरे से बंधे हुए हैं। एक दूसरे के चरित्र को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। चाहें वो दिग्गज कलाकार हो या नए कलाकार हो। सब घुल मिल गए हैं।  इस क्रम में सीरीज के पिछली बार से बेहतर संगीत रचने के लिए मंगेश धाकड़े को साधुवाद। बेहतर पटकथा के लिए सुभाष कपूर, नंदन सिंह और उमाशंकर सिंह सराहना के काबिल है।

अनूप सिंह के कैमरे ने भी माहौल को बनाए रखा है। हर पहलू पर बारीकी से काम हुआ है। सभी को मौका मिला है। कहीं कोई जल्दबाजी नहीं नज़र आती है।

“सेंनुर धुँआइ गइल, रहिया अन्हार भइल, पियवा हमार होइ गईल निर्मोहिया…” डॉक्टर सागर की लिरिक्स और शारदा सिन्हा की आवाज़ ने मिलकर ‘महारानी 2’ में एक तरह का क्लासिक रचा है। ‘महारानी’ का दूसरा सीजन इन सब कारणों के चलते एक अच्छा प्रयास बन सका है।

महारानी 2 यदि आपने देख ली है तो आपको याद होगा कि एक मशहूर मॉडल का बलात्कार हो जाता है, स्थानीय विधायक “दुलारी यादव” उसकी हत्या भी करवा देता है। इसी घटना के केंद्र में रहकर महारानी 2 की ये वाली पटकथा आगे बढ़ती है।

तो हम इसी किरदार बात करते हुए आगे बढ़ाते है। दुलारी यादव का किरदार निभाए है – नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली से प्रशिक्षित ‘सुकुमार टुडू’। 

यूं तो इस सीरीज में कई खलनायक मिलते हैं, जो अपनी अपनी अदाकारी से खलनायक की अलग-अलग नवैयत बतलाते हैं। लेकिन टुडू के अभिनय क्षमता की दाद देनी होगी। इनके अभिनय के दम से हमें किसी पिछड़े इलाके में सक्रिय माफिया के परिघटना को समझने में आसानी होती है।

दिव्येंदु भट्टाचार्य का अभिनय भी लाजवाब रहा है इस सीरीज में उनके ही तहकीकात से पूरे नेता बिरादरी की असल चरित्र सामने आते है। रानी के सचिव कावेरी श्रीधरन के रूप में कनी कुसरुति ने भी किरदार को विस्तार दिया जोदर्शकों को पसंद आ रहा है।

अब बात ‘दानिश इकबाल’ की। दानिश इकबाल ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली’ और ‘द रॉयल सेंट्रल स्कूल ऑफ स्पीच एंड ड्रामा, लंदन’ से अध्ययन किए है। और रंगमंच की दुनिया से वास्ता रखते हैं।

इस महारानी 2 सीरीज से पहले एक अन्य ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर क्राइम थ्रिलर सीरीज ‘अरण्यक’ (2021), जिसमें रवीना टंडन, परमब्रत चटर्जी और आशुतोष राणा ने अभिनय किया, उन्हें एक कैफे मालिक, गोविंद की भूमिका निभाते हुए देखा गया। आपको याद होगा गोविंद को कितने लोग अपराधी मान कर चल रहे थे।

बहरहाल अब इन्होंने महारानी-2 में “दिलाशद मिर्ज़ा” का किरदार निभाकर अपने अदाकारी से प्रबुद्ध दर्शकों की तरफ अपना ध्यान आकर्षित कर, वाहवाही बटोर रहे हैं।

मसलन आपने देखा होगा कि “आशीर्वाद यात्रा” वाले दृश्य में जब “नवीन कुमार” अपने दल-बल के साथ रथ पर सवार होकर नारों के बीच एंट्री लेते हैं। जो इनके किरदार का औरा बखुबी बरकरार रखता है। तभी “दिलशाद मिर्ज़ा” जो स्थानीय विधायक, प्रदेश का सबसे बड़ा माफिया और गुंडा है, कि एंट्री खुली जीप के माध्यम से होती है। लेकिन बिना डायलॉग के अपने आंखों के अभिनय द्वारा यह साबित कर देते है कि वह ‘शेर’ है। जिस शेर की बात दिलशाद मिर्ज़ा के समर्थक कर रहे थे कि “देखो देखो कौन आया, शेर आया शेर आया!” 

यहां दिलशाद मिर्ज़ा, नवीन कुमार से तनिक भी उन्नीस नज़र नहीं आ रहे हैं। यहां दिलशाद मिर्ज़ा की आंखों में जो गुस्सा है वह इस सीरीज को आगे आने वाले दृश्यों को बल प्रदान करता है। और यही इस दृश्य की सार्थकता है। इसी की मांग भी है। यहीं यह बात जाहिर होती है कि दानिश इकबाल एक सक्षम अभिनेता है।

एक अन्य दृश्य में जब भीमा भारती दिलशाद मिर्ज़ा से पूछते है कि “धैर्य को उर्दू में क्या कहते हैं दिलशाद?” 

दिलशाद बोलते है – “इत्मीनान”

लेकिन जिस लहज़े से वो यह शब्द बोलते हैं कि पूरे उर्दू भाषा का मान रख लेते हैं। इस सीरीज में जिंदगी का भदेश उन गालियों के साथ हमारे कानों में पड़ता है जो भद्र जन को तनिक नहीं सुहाता है। लेकिन गाली के माध्यम से इन्होंने अपनी अभद्रता जाहिर की है। कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी है। उनका क्राफ्ट उभर कर दिखता है। 

दरअसल ओटीटी नए अभिनेताओं और उन लोगों के लिए एक वरदान है जो कुछ गंभीर और अलग करना चाहते हैं।

ख़ैर आप सब भी इत्मीनान रखिए, किसी के साथ कोई नाइंसाफी नहीं होगा। आप निश्चिंत रहिए। और इंतजार कीजिए तीसरे सीजन का। उम्मीद है तीसरा सीजन भी दर्शकों का मनोरंजन करेगा।

 

– शिवम् राय

Shivam Rai

समकालीन मुद्दों पर लेखन। साहित्य व रंगकर्म से जुड़ाव।

https://www.facebook.com/shivam.rai.355/

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