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भारतीय क्रिकेट टीम की विश्व विजेता बनने की उम्मीदों को करारा झटका तब लगा जब सुपर 12 के अपने अंतिम मुकाबले में न्यूजीलैंड ने अफगानिस्तान को आसानी से हरा दिया। इसी हार के साथ एक और आईसीसी टूर्नामेंट में भारत खाली हाथ लौट आया। कोच रवि शास्त्री, कप्तान विराट कोहली, उपकप्तान रोहित शर्मा से सजी टीम इंडिया का सपना चकनाचूर हो गया। मेंटॉर महेंद्र सिंह धोनी टीम के साथ जुड़कर भी कोई खास कमाल नहीं कर सके। टीम इंडिया 2012 के बाद पहली बार टी-20 विश्वकप के पहले ही दौर में बाहर हो गई। इस विश्वकप में भारत का सफर 2007 के वनडे वर्ल्डकप की याद दिलाता है, जहां भारत श्रीलंका और बांग्लादेश से हारकर पहले ही दौर में बाहर हो गया था। भारत अपना अंतिम मुकाबला सोमवार को कमजोर नामीबिया से खेलेगा। बतौर कप्तान विराट कोहली का यह अंतिम टी-20 मुकाबला होगा। इसी के साथ मुख्य कोच रवि शास्त्री, गेंदबाजी कोच भारत अरुण और फील्डिंग कोच आर श्रीधर का करार भी भारतीय टीम के साथ खत्म हो जाएगा। ऐसे में टीम इंडिया अपने अंतिम मुकाबले में जीत हासिल कर उन्हें अच्छा फेयरवेल देने की कोशिश करेगी। हालांकि छोटे प्रारूप की कप्तानी में विश्वकप जीतने का मलाल कप्तान कोहली को हमेशा रहेगा। बहरहाल इस हार के बाद टीम की रणनीति पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। आज हम उन कारणों पर नजर डालेंगे जो इस वर्ल्डकप में भारत के लिए विलेन साबित हुए।
लगातार क्रिकेट खेलना पड़ा भारी
वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप का फाइनल मैच भारत ने इंग्लैंड में खेला। इसके बाद भारत ने इंग्लैंड में ही 5 टेस्ट मैचों की सीरीज खेली जो दुर्भाग्यवश बीच में ही रद्द हो गई। भारत ने उस दौरे पर 4 टेस्ट मैच खेले थे। इसके बाद भारतीय टीम आईपीएल पार्ट- 2 खेलने यूएई में आ गई। इसी बीच टीम के कुछ खिलाड़ी श्रीलंका में सीमित ओवरों की सीरीज खेल रहे थे। अपने मुख्य खिलाड़ियों के साथ टीम इंडिया ने अपनी आखिरी टी-20 सीरीज मार्च के महीने में अपने घर पर इंग्लैंड के खिलाफ खेली थी। इसके बाद भारतीय खिलाड़ी आईपीएल में व्यस्त हो गए। कोरोना के कारण आईपीएल को बीच में ही रद्द करना पड़ा और इसके बाद भारतीय टीम इंग्लैंड के लिए रवाना हो गई। ऐसी उम्मीद थी कि यूएई की विकेट पर आईपीएल खेलकर हमारे खिलाड़ियों को इन परिस्थितियों का पता चल जाएगा, लेकिन ऐसा हो ना सका। लंबे समय से एक साथ न होने की वज़ह से टीम में तालमेल का अभाव साफ़ दिख रहा था। लगातार क्रिकेट खेल रहे खिलाड़ियों को आराम का समय नहीं मिला, नतीजतन हमारे खिलाड़ी दूसरे देश के खिलाड़ियों के मुकाबले थके हुए नजर आ रहे थे।
लेग स्पिनर को टीम में शामिल न करना
टी-20 विश्वकप में फिरकी गेंदबाजों का बोलबाला रहा है। चाहे वो श्रीलंका के वानिंदु हसरंगा हों, या ऑस्ट्रेलिया के एडम जंपा, इंग्लैंड के आदिल राशिद हों या फिर अफगानिस्तान के राशिद खान। स्पिनर होने के साथ-साथ इन सभी गेंदबाजों में जो एक बात समान है वो है इनकी शैली। ये सभी गेंदबाज लेग स्पिनर हैं। इन सभी की गेंदों ने विपक्षी टीम को अपने सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। इस विश्वकप में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज की लिस्ट में श्रीलंकाई स्पिनर हसरंगा का नाम सबसे ऊपर है। हसरंगा 8 मैचों में 16 विकेट चटकाए हैं, वहीं इस सूची में तीसरे नंबर पर कंगारू गेंदबाज एडम जंपा हैं। जंपा ने 5 मैचों में 11 विकेट चटकाए हैं। इन सभी के बीच भारत के स्टार लेग स्पिनर युजवेंद्र चहल टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में नहीं बल्कि भारत में थे। चहल का टीम में चयन ही नहीं हुआ। चहल की जगह पर लेग स्पिनर राहुल चाहर को तरजीह दी गई। मगर विराट ने चारों मैच में उन्हें अंतिम एकादश में जगह नहीं दी। भारत को कहीं न कहीं अपने सबसे अनुभवी लेग स्पिनर की कमी जरूर खली है।
फिट खिलाड़ियों के बदले चोटिल खिलाड़ियों को जगह
विश्वकप जैसे बड़े टूर्नामेंट में अगर कोई टीम अनफिट खिलाड़ियों को जगह देगी तो उसपर सवालिया निशान जरूर लगेंगे। टीम के कुछ खिलाड़ी पूरी तरह फिट नहीं थे फिर भी उन्हें टीम में शामिल किया गया। इस लिस्ट में सबसे ऊपर हार्दिक पंड्या का नाम आता है। क्रिकेट में ऑलराउंडर की उपाधि उस खिलाड़ी को दी जाती है जो बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों कर सके। मगर हार्दिक जब बल्लेबाजी करने आए तो उनका फॉर्म अच्छा नहीं था और वे गेंदबाजी के लिए पूरी तरह से फिट नहीं थे। हार्दिक की फिटनेस पहले ही सवालों के घेरे में आ रही थी। हार्दिक आईपीएल में भी गेंदबाजी नहीं कर रहे थे। अगर एक ऑलराउंडर गेंदबाजी नहीं कर रहा है तो वह टीम पर बोझ ही है। टीम उसके स्थान कर एक विशेषज्ञ बल्लेबाज को जगह दे सकती है। मगर टीम इंडिया ने ये साहसिक कदम नहीं उठाया। हां, हार्दिक ने न्यूजीलैंड के खिलाफ गेंदबाजी की लेकिन अगर हार्दिक गेंदबाजी नहीं भी करते तो भी टीम को बहुत फर्क़ नहीं पड़ता। इसके बाद इस लिस्ट में नाम आता है मिस्ट्री स्पिनर वरुण चक्रवर्ती का। वरुण को आईपीएल के दौरान घुटने में चोट लग गई थी, लेकिन इसके बाद भी वरुण खेलते रहे। मिस्ट्री स्पिनर होने के कारण उन्हें वर्ल्डकप की टीम में शामिल भी किया गया, मगर वे प्रभावी नहीं रहे। वहीं भुवनेश्वर कुमार का फॉर्म चिंताजनक था, और उन्होंने वर्ल्डकप में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया।
विश्वकप के दौरान भी बल्लेबाजी क्रम में होते रहे प्रयोग
अगर कोई आपसे कहे कि रोहित शर्मा नंबर तीन पर बल्लेबाजी करने आ रहे हैं तो शायद आपको विश्वास न हो। मगर इस विश्वकप में कीवियों के खिलाफ अहम मुकाबले में सलामी बल्लेबाजों के रूप में ईशान किशन और लोकेश राहुल नजर आए। राहुल और ईशान ने इससे पहले साथ में पारी की शुरुआत नहीं की थी, लिहाजा दोनों में तालमेल की गड़बड़ी साफ़ झलक रही थी। रोहित ने खुद को सलामी बल्लेबाज के रूप में साबित किया है और विराट कोहली सीमित ओवरों की क्रिकेट में तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी करने वाले सम्भवतः दुनिया के सबसे महान खिलाड़ी हैं। मगर इन दोनों ने ही अपने बल्लेबाजी क्रम में खुद को ‘डिमोट’ किया जो टीम की हार का कारण बना।
अच्छी टीमों के खिलाफ खराब बल्लेबाजी
इस विश्वकप से पहले भारतीय टीम का सेमीफाइनल तक के सफर की उम्मीद तो की ही जा रही थी। इसके पीछे कारण यह था कि भारत के ग्रुप में दूसरे ग्रुप के मुकाबले आसान टीमें थीं। मगर भारत ने पाकिस्तान और न्यूजीलैंड के ख़िलाफ़ खराब बल्लेबाजी की। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ शाहीन अफरीदी की गेंदों के आगे भारतीय ओपनर फेल हुए और भारतीय टीम ने वहीं हथियार डाल दिए। विराट के 57 की बदौलत भारत किसी तरह 151 तक पहुंच पाया। और गेंदबाजी में तो भारत पहले मुकाबले में पूरी तरह विफल रहा। दूसरे मैच में बल्लेबाजों से वापसी की उम्मीद थी। लेकिन बल्लेबाजी में प्रयोग करते-करते टीम ने किसी तरह 100 का आंकड़ा पार किया। और कीवी बल्लेबाजों को 111 रन का लक्ष्य दिया। गनीमत ये रही की जसप्रीत बुमराह ने इस विश्वकप में भारतीय गेंदबाजों के विकेट का कॉलम भर दिया।
आक्रमक रवैये की जगह रक्षात्मक क्रिकेट खेलना
आईसीसी की टी-20 रैंकिंग कर यदि नजर डालें तो चोटी पर इंग्लैंड की टीम नजर आती है। इंग्लैंड ने 2015 वनडे वर्ल्डकप के बाद से सीमित ओवरों की क्रिकेट में अपना रवैया बिल्कुल बदलकर रख दिया है। वर्ल्डकप 2019 में इंग्लैंड का विजेता बनाना इस बात का जिंदा दस्तावेज है। टी-20 में भी इंग्लैंड ने आक्रमक रुख अपनाया है। टी-20 से कई खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता भी दिखाया गया और टी-20 विशेषज्ञ खिलाड़ियों को टीम में शामिल किया गया। हालांकि इस चक्कर में उन्हें कई बार हार का सामना भी करना पड़ा है लेकिन फिर भी इंग्लैंड ने उस रवैये में कोई बदलाव नहीं किया है। उसी तरह की क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया और कीवी टीम भी खेलती है। वहीं टीम इंडिया टी-20 में भी आक्रामक रुख नहीं अपना पाती है जिसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अब इस परिपाटी को बदलने की जरूरत है। अगर टीम इंडिया फटाफट क्रिकेट को वनडे की तरह ही खेलती रहेगी तो अगले साल होने वाले टी-20 वर्ल्डकप में भी भारत की उम्मीदों को झटका लग सकता है।
नामीबिया के खिलाफ मैच के बाद भारतीय क्रिकेट में विराट कोहली और रवि शास्त्री युग का भी अंत हो जाएगा। टीम के कोच के रूप में राहुल द्रविड़ टीम से जुड़ेंगे। कप्तान के लिए रोहित शर्मा और लोकेश राहुल का नाम आगे चल रहा है। उम्मीद है यहां से टी-20 क्रिकेट में भारत का रवैया बदलेगा और टीम का नया उदय होगा।