7,692 total views, 2 views today
“बाबू मोशाय, ज़िंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहांपनाह, उसे ना आप बदल सकते हैं ना मैं. हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिनकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों में बंधी है. कब कौन कहां उठेगा ये कोई नहीं बता सकता।”
एक खिलाड़ी, जो ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट का भविष्य था। जिसे माइकल क्लार्क का उत्तराधिकारी कहा जाता था। जो आगामी सीरीज में भारत के खिलाफ़ उतरने को तैयार था, मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था। महज़ 5 दिन बाद उसका जन्मदिन आने वाला था, मगर शायद उपरवाले ने उस कठपुतली को खेल के मैदान से ही उठा लिया।
भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज बस शुरू होने ही वाली थी। भारतीय खिलाड़ी भी कंगारुओं का शिकार करने उनके गढ़ में आ चुके थे। रोमांच परवान पर था। दोनों देशों की मीडिया और फैन्स इस सीरीज को लेकर काफ़ी उत्सुक थे। मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था।
25 नवंबर 2014 का दिन था, ऑस्ट्रेलिया में शेफील्ड शिल्ड का मैच चल रहा था। टीमें थीं, न्यू साउथ वेल्स और दक्षिण ऑस्ट्रेलिया। सब कुछ समान्य था। दोपहर का सत्र शुरू हुआ। दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के 25 वर्षीय बल्लेबाज फिलिप ह्यूज 63* पर बल्लेबाज़ी कर रहे थे। तभी न्यू साउथ वेल्स के तेज गेंदबाज सीन एबॉट ने बाउंसर डाली, ह्यूज ने हुक शॉट खेलने का प्रयास किया।
लेकिन दुर्भाग्यवश गेंद और बल्ले के बीच कोई संपर्क नहीं हो सका और तेज रफ्तार से आ रही गेंद सीधे ह्यूज के गले पर लगी। कुछ सेकंड तक तो ह्यूज खड़े रहे मगर फिर वे बेसुध होकर गिर पड़े। सभी खिलाड़ी उनकी तरफ भागे और उन्हें होश में लाने की कोशिश की, मगर यह सम्भव ना हो सका। मैदान पर एम्बुलेंस आई और ह्यूज को मैदान से बाहर पास के अस्पताल ले जाया गया। मैदान पर सब कुछ ठीक था, क्योंकि चोट तो खेल का हिस्सा है। मगर मैदान के बाहर कुछ भी सही नहीं था। कुछ समय पहले जो खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया की तरफ से भारत के खिलाफ़ सीरीज की तैयारी कर रहा था, वही अब जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। ह्यूज कोमा में चले गए थे। 2 दिन तक जिंदगी से जंग लड़कर आखिरकार ह्यूज ने 27 नवंबर को दुनिया को अलविदा कह दिया। पूरा क्रिकेट जगत सन्न रह गया था। क्रिकेट के उगते सूर्य का अस्त हो गया।
ह्यूज थे तो ऑस्ट्रेलिया के मगर उनके जाने से पूरी दुनिया उदास हो गई थी। लोग बाउंसर मुखालफत करने लगे। मगर एक सत्य यह भी है कि उस दिन कुल 23 बाउंसर फेंके गए थे, जिनमें से 20 ह्यूज को फेंकी गई थी, जिसे उन्होंने सूझ-बूझ के साथ खेलीं, मगर वो गेंद फिलिप ह्यूज का काल बन कर आई थी। इतनी छोटी उम्र में यूँ चले जाना किसी को स्वीकार्य नहीं था।
25 साल का वो खिलाड़ी, जो कुछ दिन बाद भारत के गेंदबाजी आक्रमण का सामना करने वाला था, आज ताबूत में बंद था। जो 2015 विश्वकप टीम में शामिल होने का ख्वाब देख रहा था, आज दुनिया को अलविदा कह चुका था। वो 63 रन पर हमेशा हमेशा के लिए नाबाद रह गया। जो ऑस्ट्रेलियाई टीम अपनी आक्रामकता के लिए मशहूर थी, आज वह टूट चुकी थी। जिस गेंद से उनकी मौत हुई मानो वह खुद कह रहा हो “I AM SORRY PHIL HUGES”। जो क्रिकेट प्रेमी कभी ह्यूज के स्क्वेयर कट पर तालियां बजाते थे, आज वही अपने बैट की फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर के उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे थे। सचमुच कभी-कभी क्रिकेट बहुत निर्मोही हो जाता है।
माइकल क्लार्क ने फिलिप ह्यूज को याद करते हुए कहा था, “मेरे फोन में आज भी ह्यूज का नंबर सेव है”। ह्यूज आज भी याद आते हैं और हमेशा आते रहेंगे।
63* FOREVER NOT OUT