OTD: जब सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट को कहा था अलविदा

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जिन्होंने 24 सालों तक भारतीय क्रिकेट का बोझ अपने कंधों पर उठाया। जो 6 बार क्रिकेट के महाकुंभ में देश के लिए खेले। जिनका बल्ला ही उनका हथियार था, जिससे उन्होंने कई रणभूमि जीती थी। कई बार अभिमन्यु की तरह अकेले ही विरोधियों के चक्रव्यूह में घुस जाते और उसे तहस-नहस कर देते थे। जो भोली सी मुस्कान से बड़े से बड़ा रण आसानी से भेद देते थे और टीम के संकटमोचक बनते थे। अन्य खिलाड़ी तो 22 गज की पट्टी पर सिर्फ खेलते हैं, ये 22 गज की पट्टी की पूजा करते थे। 5 फीट 5 इंच के ये खिलाड़ी क्रिकेट की दुनिया के एक ऐसे एवरेस्ट बन गए जहाँ तक पहुंचना कई खिलाडियों का बस ख्वाब ही होता है। कालांतर में हिन्दुस्तान के यह खिलाड़ी क्रिकेट के “भगवान” बन गए। उनका नाम था “सचिन रमेश तेंदुलकर”।

बात है जुलाई 2010 की, भारत की टीम श्रीलंका दौरे पर थी। श्रीलंका में इस महीने में भीषण गर्मी होती है। टेस्ट मैच कोलंबो में था। टीम के अभ्यास सत्र का समय था सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक। टीम 12 बजे के बाद होटल जा चुकी थी। मगर सचिन तेंदुलकर 12 बजे के बाद भी मैदान में ही थे। जिस पिच पर मैच होना था, सचिन उसके बगल वाली पिच पर अकेले ही कभी बैठते, कभी बैटिंग की मुद्रा में आ जाते। यही काम अगले दो घंटों तक चलता रहा। एक पत्रकार उन्हें देख रहे थे, वे हैरान थे। उन्होंने जा कर सचिन से इसका कारण पूछा, सचिन ने जो जवाब दिया उस जवाब में ही झलकता था कि वो क्रिकेट सिर्फ खेलते ही नहीं बल्कि उसकी पूजा करते हैं। सचिन ने कहा, ” कोलंबो में अभी गर्मी का मौसम है, और 12 से 2 के बीच यह गर्मी और प्रचंड रूप धारण कर लेती है। मैं बस यह देख रहा था कि मेरा शरीर इस गर्मी में खेल सकेगा या नहीं।” यह था खेल के प्रति सचिन का समर्पण। उन्होंने उस टेस्ट में 203 रन की पारी खेली और मैच ड्रॉ हो गया।

उस खिलाड़ी का सपना नहीं था कि वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक लगाए या 30 हज़ार से ज्यादा रन बनाए या फिर एकदिवसीय मैच में दोहरा शतक लगाने वाला दुनिया का पहला खिलाड़ी बने। उनकी तम्मना बस इतनी थी कि उन्हें भी क्रिकेट विश्वकप अपने हाथों में उठाने का मौका मिले। जो सपना उन्होंने 1992 से देखना शुरू किया वह 19 साल बाद साकार हुआ। 2 अप्रैल 2011 वह मुबारक दिन साबित हुआ जब भारत 28 साल बाद विश्वविजेता बना था। उस रात भारतीय टीम के सबसे सीनियर खिलाड़ी सचिन की आँखें भी नम
थीं। 38 साल के सचिन में 18 साल वाला जोश था। सचिन को साथी खिलाड़ियों ने कंधों पर उठाया और पूरे मैदान का चक्कर लगाया। पूरे देश के साथ सचिन के लिए भी वह रात कभी न भूलने वाली रातों में से एक होगी। उस विश्वकप में सचिन भारत की तरफ से सर्वोच्च स्कोरर थे।

आईपीएल को युवाओं का खेल कहा जाता है मगर 37 साल के सचिन ने 2010 के आईपीएल में 618 रन बनाए और ऑरेंज कैप अपने नाम किया। इस प्रदर्शन ने अंग्रेजी कहावत “Form is Temporary, Class is Permanent” को एक बार फिर चरितार्थ कर दिया।

कप्तान के रूप में सचिन ज्यादा सफल नहीं रहे, इससे उनकी बल्लेबाज़ी पर भी काफी प्रभाव पड़ा और उन्होंने कप्तानी छोड़ दी। आईपीएल में भी मुंबई इंडियंस की कप्तानी की मगर ट्रॉफी दिलाने में नाकाम रहे। मगर जो शौर्य उन्होंने बल्ले से दिखाया था, उसके सामने यह असफलता फीकी ही है।

16 नवंबर 2013, आख़िर वह तारीख आ ही गई, जब क्रिकेट की दुनिया का महान खिलाड़ी क्रिकेट को अलविदा कहने जा रहा था। जब मुंबई का वानखेड़े स्टेडियम अपने कदमों पर खड़ा था, और सभी ज़ुबान पर एक ही नाम था, सचिन रमेश तेंदुलकर। 24 सालों का सफर अब खत्म होने वाला था। सारा वानखेड़े स्टेडियम रुंधे कंठ से क्रिकेट के सबसे बड़े खिलाड़ी का जयघोष कर रहा था। यह विश्वास करना कठिन था कि क्रिकेट का सबसे बड़ा सेवक अब मैदान में बतौर खिलाड़ी कभी नहीं उतरेगा। और जैसे ही वेस्ट इंडीज का आखिरी विकेट गिरा, भारत ने मैच जीता और सचिन ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया। जब सचिन ने 22 गज के उस मंदिर में एक आखिरी बार माथा टेका, उनकी आँखें नम हो गईं, क्योंकि सचिन क्रिकेट के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। उस दिन क्रिकेट की संस्था क्रिकेट को अलविदा कह रही थी। सचिन, सचिन के शोर से पूरा स्टेडियम सचिनमय हो गया था। अब मैदान पर वो स्ट्रेट ड्राइव कभी दिखेगा, जो सचिन के बल्ले से निकलता था।

सचिन एक ही थे, जिनका मैदान पर होना जीत की गारंटी थी। एक स्वच्छ छवि वाले खिलाड़ी जो मुँह से नहीं बल्ले से आग उगलते थे। विरोधियों की तीखी टिप्पणियों का जवाब अपने बल्ले के करारे शाॅट्स से देते थे।
जो एक “तितली” की तरह उड़ान भरते थे मग़र डंक “मधुमक्खी” की तरह मारते थे। मौजूदा क्रिकेट में “विराट कोहली” को सचिन का उत्तराधिकारी कहा जाता है, मगर वो एक ही थे और एक ही रहेंगे। सचिन जैसे खिलाड़ी सदी में एक बार आते हैं और अपने खेल से पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लेते हैं, और जब संन्यास लेते हैं तो पूरी दुनिया को रुला जाते हैं।

हाँ, पूरे हिन्दुस्तान ने अपने भगवान को देखा है, वो जर्सी नंबर 10 में मैदान पर उतरते थे।
एक युग का अंत हुआ था 16 नवम्बर 2013 को।

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