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बनारस के जिस सिनेमाघर में ‘RRR’ फिल्म देखने गया था। वहां के दर्शक भी फिल्म जितने ही मनोरंजक थे। कभी-कभी एक्शन वाले दृश्य पर तो वो काशिकेय भाषा की शब्दावली से मर्दवादी शब्द निकाल-निकाल कर अपने रोमांच का भोंडा प्रदर्शन कर रहे थे। ये सोचे-विचारे बिला कि यहां महिलाएं और बच्चे भी हैं। और कभी-कभी कुछ दृश्य पर इतने उग्र और भक्ति से इतने ओत-प्रोत कि “जय श्री राम” का उद्घोष ऐसे कर रहे थे कि सिनेमाघर का साउंड सिस्टम भी फीका साबित हो जा रहा था। भोले दर्शक सिनेमाघर के चेयर पर बैठे… परदे पर प्रदर्शित हो रहे किसी छलावे को देखकर “पूजा-अर्चना और सत्कर्म” में लीन हुए जा रहे थे। उस वक्त मेरे दिमाग में एक बात कौंध रही थी कि सिनेमाघर में अगर पुष्प-अगरबत्ती लाने की अनुमति होती तो आजकल के सिनेमाघर, सिनेमाघर नहीं पूजाघर बन जाते। इन महान भक्तों की भक्ति सिनेमाघर में जाया हुए जा रही है। यही एक बात मुझे खल रही थी। फिल्म में तो मुझे ऐसा कुछ खला नहीं, क्योंकि निर्माता ने सब ढोंग रचाने के बाद अंत में ‘जल, जंगल, जमीन’ का छौंका लगाकर बड़े व्यासायिक तरीके और चालाकी से बखूबी बैलेंस किया है। खैर मैं मनोरंजन के उद्देश्य से फिल्म देखने गया था और फिल्म भरपूर मनोरंजन कराती है। तो क्यों ना कुछ बातें फिल्म पर ही हो जाए!
‘RRR’ मसालेदार, मनोरंजक और दुर्लभ फिल्म है। इसमें रोमांच, ब्रोमांस, रोमांस है। फिल्म देखने के बाद आप खुलमखुल्ला कह सकते है कि “RRR” फैंटसी, मायथोलॉजी और रियलिटी का अद्भुत मिश्रण है।
फिल्म के मुख्य पात्रों के नाम हैं- राम, सीता और भीम। दो अलग-अलग पौराणिक गाथाओं (‘रामायण’ और ‘महाभारत’) के पात्रों के नाम इस फिल्म में एक साथ आने भर से पौराणिकता का पुट आता है… लेकिन इन पौराणिक पात्रों के साथ न्याय करने के लिए इसे इस फिल्म में बखूबी फिल्माया भी गया है। यही फिल्मांकन (फैंटसी, मायथोलॉजी और रियलिटी का मिश्रण) ही इस फिल्म को अलग बनाता है।
अमूमन होता ये है कि फिल्मों की कहानी को फिल्माने के लिए एक्शन और ड्रामा जैसे टूल्स का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस फिल्म इस तकनीक के उलट काम होता है। इसमें एक्शन सीक्वेंस और ड्रामा की बदौलत कहानी को फिल्माया जाता है। और फिल्म देखते वक्त आपको ये चीज़ कहीं भी नहीं खलती है। आप इसका ही आनंद लेते है। क्योंकि दृश्य को फिल्माने के लिए कहानी के साथ समझौता नहीं किया जाता।
मध्यांतर तक आपको समय का पता नहीं चलेगा। क्योंकि फर्स्ट हॉफ बहुत ही शानदार बन पड़ा है। मध्यांतर के बाद कुछ देर के लिए कुछ धीमेपन का अहसास होता है। मगर अंत के आधे घंटे में फिल्म आपकी वो सारी शिकायतें नदारद कर देती है… और आप फिर से रोमांच से भर जाते है।
अजय देवगन गेस्ट अपीयरेंस में दिखाई देते हैं। जिसे वजनदार तरीके से निभा भी ले जाते हैं। आलिया भट्ट ने राम की मंगेतर सीता का रोल किया है। मगर आलिया को ज्यादा कुछ करने को मिला नहीं है लेकिन जो भी मिला है उसमें अपने पात्र की खूबी दिखा पाती है। रे स्टीवेंसन ने फिल्म के मेन विलन गवर्नर स्कॉट और एलिसन डूडी ने उनकी पत्नी का रोल किया है। ओलिविया मॉरिस ने जेनी का रोल निभाया है। इस फिल्म में जितनी भी महिलाएं हैं, उनमें से सबसे ज़्यादा स्क्रीनटाइम ओलिविया को मिला है।
फिल्म में एक गाना है ‘नाचो नाचो’। क्या बावली गाना है। कोरियोग्राफी और परफॉर्मेंस के लिहाज़ से वो क्या बवाल गढ़ता है। इसमें दोनों लीड एक्टर्स ‘रामचरण और NTR जूनियर’ अपने केमिस्ट्री और परफॉर्मेंस से बवाल मचा देते हैं। खैर ये दोनों एक्टर्स पूरी फिल्म में बवाल करते नजर आते है।