इंग्लैड के मशहूर इतिहासकार ए एल वाशम ने 1954 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “अद्भुत भारत ” में कहा था कि-भारत एक उत्सवधर्मी देश है और यहां वर्षभर लोग छक कर उत्सव मनाते रहते हैं। यह विचार ए एल वाशम ने पश्चिमी दुनिया के उन इतिहासकारों की प्रतिक्रिया में दिया था जिन्होंने दुनिया में भारत की नकारात्मक छवि प्रस्तुत करते हुए यह विचार स्थापित करने का प्रयास किया था कि- सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में भारतवासी अंग्रेजी शासन काल में सर्वाधिक सुखी ,सम्पन्न और खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे। विलियम जोंस और मैक्समूलर जैसे इतिहासकारों के विपरीत ए एल बाशम ने अपनी पुस्तक अद्भुत भारत के माध्यम से यह बताया कि-प्राचीन भारत के लोग सुखी समृद्ध और खुशहाल जीवन जीते थे तथा ऐश्वर्य और वैभव की दृष्टि से प्राचीन भारत का विशेष रूप से विदेशियों के आगमन के पूर्व का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। स्वाभाविक रूप से जहाँ समृद्धि और सम्पन्नता सर्वाधिक होती हैं वहीं सर्वाधिक उत्सव मनाए जातें हैं। किसी भी देश में समृद्धि और सम्पन्नता वहां के लोगों के परिश्रम प्रतिभा और उद्यमिता से आती हैं। इस प्रकार दीपावली, दशहरा, होली और बसंतपंचमी जैसे अनगिनत उत्सवों में भारतीयों की उत्सवधर्मिता प्राचीन भारत की समृद्धि और सम्पन्नता के साथ-साथ भारतीयों की प्रतिभा और उद्यमिता का जीवंत प्रमाण है। भारतीयों की उत्सवधर्मिता ही भारतीय संस्कृति की शाश्वतता और निरन्तरता का सबसे सशक्त आधार रहीं हैं। क्योंकि इन उत्सवों के माध्यम से हमारी सांस्कृतिक विरासत पिढि दर पीढी प्रवाहित होती रही। विश्व के सर्वाधिक विविधतापूर्ण,बहुभाषी, बहुधार्मीक ,बहुजातीय और बहुसांस्कृतिक देश में सम्पूर्ण देशवासियो को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य भी हमारे उत्सव और त्योहार करते हैं । दशहरा दीपावली होली ईद-उल -फितर, बारावफात ईस्टर, क्रिसमस डे जैसे त्यौहार जितने उत्साह ,उल्लास और श्रद्धा से उतर भारत में मनाए जातें हैं उतने ही उत्साह ,उल्लास और श्रद्धा से दक्षिण भारत में भी मनाए जातें हैं। इस तरह जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कटचल तक हमारी एकता का और अखंडता का भी सर्वाधिक सशक्त माध्यम हमारी उत्सवधर्मिता रही हैं ।

किसी भी सभ्य समाज को सुचारु से संचालित करने के लिये केवल शासन-सत्ता का भय ही पर्याप्त नहीं होता है। इसके साथ ही साथ समाज को समाज को सुसंगठित और अनुशासित रखने में मूल्यों, मान्यताओ, आदर्शों, परम्पराओं और रीति-रिवाजों की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। भारतीय बसुन्धरा के प्रत्येक त्योहार और उत्सव हमारी वर्तमान पीढ़ी को महान मानवतावादी मूल्यों मान्यताओं और आदर्शों का बोध कराते है और व्यक्तिगत जीवन में अनुसरण के लिए प्रेरित करते हैं। इसके साथ ही साथ हमारी समुन्नत परम्पराऐं और रीति-रिवाज नूतन पीढी को सुसभ्य , सुसंस्कृत और अनुशासित नागरिक जीवन जीने के लिए प्रेरणा देती हैं। भारतीय समाज प्रचलित सत्य,अहिंसा,ईमानदारी और बचनबद्धता जैसे मूल्यों, मान्यताओ और आदर्शों की स्थापना हमारे ॠषियो-मुनियों ,पीर-फकीरो महापुरुषों और राम,कृष्ण और गौतम बुद्ध जैसे महानायकों के त्याग, तपस्या और उत्कट उत्कर्षो के फलस्वरूप हुई। इसलिए उत्सवों के अवसर पर भारतवासी अपने महापुरुषों और महानायकों को तथा उनके त्याग तपस्या और उत्कर्ष को स्मरण कर अपने व्यक्तिगत जीवन को समुन्नत करते हुए एक बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित होते हैं। अपने अतीत से अनुप्राणित होकर बेहतर समाज बनाने का प्रयास ही हमारे उत्सवों की सर्वोत्तम सार्थकता है।
किसी भी सभ्यता और संस्कृति का सृजन और निर्माण उस देश में रहने वाले लोगों की सहज बुद्धि के सृजनात्मक, रचनात्मक, सकारात्मक और कलात्मक प्रयासों के फलस्वरूप होता हैं। गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा दशहरा दीपावली और बसंत पंचमी के अवसर पर भारतीय की मूर्तिकला, चित्रकला ,संगीत कला और नृत्यकला के साथ-साथ अपनी अभिनय कला का जौहर दिखाने का सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते हैं। हमारे विविध प्रकार के उत्सवों के अवसर पर परम्परागत भारतीय हस्तकला के माध्यम भारतीय हाथों की जादूगरी सम्पूर्ण भारत में दिखाई देती हैं। इन उत्सवों के अवसर पर बनने वाली भव्य और मनमोहक मूर्तियां, कुम्भकारों द्वारा देवी देवताओं की आराधना हेतु बनाये जाने सुन्दर पात्र, देवी देवताओं के सम्मान में सजने वाले पांडाल, अपने अराध्य को प्रसन्न करने के लिए गायें जाने वाले सुमधुर संगीत,झूम-झूम कर हर हृदय को आह्लादित कर देने वाले नृत्य और भाव-विभोर कर देने वाले अभिनय हमारे बहुविवीध कलाओं का सौन्दर्य बोध का दिग्दर्शन कराते हैं तथा इन उत्सवों के अवसर पर इन बहुविवीध कलाओं के माध्यम से हम अपनी समृद्ध साँस्कृतिक विरासत और पहचान को दुनिया के सामने प्रस्तुत करते हैं। इन उत्सवों की वास्तविक महत्ता यही है कि- इन उत्सवो के अवसर पर विविध कलाओं का सौन्दर्य बोध होता हैं तथा इन उत्सवों में अंतर्निहित संदेशों से अनुप्रेरित होकर अपना नैतिक और चारित्रिक विकास करने का प्रयास करते हैं।
निष्कर्षतः हमारे उत्सवों की उत्सवधर्मिता और सार्थकता निम्नलिखित सूत्र वाक्यों को आत्मसात कर अनुसरण करने की आवश्यकता है-
असतो माॅ सदगमय
तमसोमा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृतगमय।।
(लेखक : बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ में प्रवक्ता हैं।)
